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________________ पतन ( 225 ) हैं / भारतभूमि में भी आज यही दशा है / पक्षगत के कारण भारत नीचे गिरता जा रहा है / कहा है कि:-... पक्षपातो भवेद्यस्य तस्य पातो भवेद् ध्रुवम् / दृष्टं खगकुलेष्वेवं तथा भारतभूमिषु // भावार्थ-- जिस को पक्षपात होता है, उसका निश्चयतः पतन होता है / पक्षिकुल में यह बात देखो / भारत में भी यही बात हो रही है। इसलिए पक्षपात नहीं करना चाहिए / सूत्रकार लज्जा और मद को छोड़ने का उपदेश दे, प्रकारान्तर से और भी वही बात कहते हैं: दुरं अणुपस्सिया मुणी तीतं धम्ममणागयं तहा / पुढे परुसेहिं माहणे अविहण्णु समयम्मि रीयइ // 5 // पण्ण समत्ते सया जए समताधम्ममुदाहरे मुणी। . सुहमे उ सया अलुसए णो कुजे णो माणि माहणे // 6 // भावार्थ- सम्यक् धर्म के विना मोक्ष नहीं मिलता है। इसका, और बीते हुए काल में और भविष्य काल में जीवों का शुभाशुभगति का विचारकर, ब्रह्मचारी मुनियों को, म्लेच्छों के कठोर वचनों से या उनके प्रहार से लेशमात्र भी कषाय नहीं करना चाहिए और खंदक ऋषि के शिष्यों की भाँति शान्ति के साय जैन शासनानुसार विचरण करना चाहिए। (1) सुंदर
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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