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________________ ( 221 ) अन्दर दीर्घकाल तक भ्रमण करते रहते हैं। परनिंदा महान पाफ का कारण है। इसी लिए इस को 'पापिनी का विशेषण दिवा गया है। इस लिए मुनियों को परनिन्दा नहीं करनी चाहिए। हे भव्यो ! श्री वितराग प्रभु का उपदेश वास्तव में ध्यान देने योग्य है / वे क्या कहते हैं ? वे कहते हैं,-कांचली त्याग करने योग्य होती है / इस लिए सर्प उस का त्याग कर देते हैं। यदि वे ऐसा नहीं करते है तो उन की दुर्दशा होती है। इसी तरह कर्म भी नष्ट करने योग्प हैं / मुनियों को उन्हें नाश करना चाहिए / क्रोधादि कषायों को मुनि कर्म का कारण समझते हैं। कर्म और कषाय का अन्वय-व्यतिरेक संबंध है / यानी कषायों के होने पर कर्म होते हैं और कषायों के नष्ट होने पर कर्म भी नहीं रहते हैं। इस बात को समझ कर मुनि कषायों का त्याग करते है और आठ मदों को अपने मनो मंदिर में स्थान नहीं देते हैं। श्री तीर्थंकरोंने कर्मनिरा के मद का भी निवारण किया है, फिर दुसरे मदों की तो बात ही क्या है ? मुनियों को दूसरों की निन्दा भी नहीं करनी चाहिए। परनिंदा का समय को उपस्थित करनेवाला मद है / जब मन में उत्कर्षता का-भपने आप को दूसरोंसे बड़ा समझने का-दिचार भाता है, तब ही
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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