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________________ ( 203 ) भी तुझे कीर्ति मिले और परभव में तेरा भला हो / नीतिशास्त्र में लिखा है कि गुरवो यत्र पूज्यन्ते यत्र धान्यं सुसंस्कृतम् / अदन्तकलहो यत्र तत्र शक ! वसाम्यहम् // भावार्थ-लक्ष्मी इन्द्र से कहती है:-हे इन्द्र ! जहाँ माता पितादि गुरुजनों की पूजा होती है, जहाँ शुद्ध किया हुआ धान्य होता है; और जहाँ घरेलु झगडे नहीं होते हैं, वहीं मैं रहती हूँ। ऊपर लिखी हुई तीन चीजें जहाँ होती हैं, वहीं लक्ष्मी का निवास होता है। हे पुत्र ! तू हमारे घर का रत्न है / यदि तू जायगा तो हमें सदैव क्लेश उठाना पडेगा / क्लेश के कारण हमारे घर से लक्ष्मी चली जायगी / परिणाम यह होगा कि हम सदा के लिए बरबाद हो जायेंगे / हे पुत्र ! तेरे नन्हे नन्हे बालक हैं उनका कौन पालन करेगा ? तेरी स्त्री नवयौवना है उसकी कौन रक्षा करेगा ? / तू उसको छोडके जाता है, वह यदि अपने को न सँभाल सकेगी तो लोगों में तेरी और हमारी बदनामी होगी। अपने ऊपर कलंक लगेगा / यद्यपि तू पापभीरु है; संसाररूपी काराग्रहसे तेरा मन उद्विग्न हो रहा है; इसी लिए तू जाना चाहता है; तथापि हमें खराब स्थिति में छोड कर जाना सर्वथा नीतिविरुद्ध है।
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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