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________________ ( 192 ) वे शान्ति और अपने साधु-सेवा के नियम को यथास्थित पालते थे। ऐसे पवित्र जीवनवाले व्यक्तियों की देव, दानवादि सेवा करें और उनके शीघ्र ही कर्म क्षय हो जाये तो इस में कुछ आश्चर्य की बात नहीं है। ___ एकवार सौधर्मेन्द्र सभा में बैठा हुआ था। उसने अवधि ज्ञानद्वारा उक्त मुनि की पवित्रता, दृढता, शान्ति और तपस्या को देखा / इस से उसने अपना सिर धुना। यह देख, देवता हाथ जोड कर बोले:-" हे महाराज ! इस समय सिर धुनने का कोई कारण नहीं बना तो भी आपने सिर धुना / इस से हमारे हृदय में शंका उत्पन्न हुई है। कृपा करके सिर धुनने का कारण बताइए और हमारी शंका का निवारण कीजिए।" इन्द्रने उत्तर दिया:-" हे महानुभावो ! भरतक्षेत्र में मैंने अवधिज्ञानद्वारा, एक महापुरुष के दर्शन किये हैं। उस की अचल और दृढ प्रतिज्ञा देखकर मुझ को आश्चर्य हुआ। फिर मैंने मनपूर्वक उस को वंदना की। धन्य है ऐसे महापुरुषों को कि जिनकी स्थिति से मनुष्यलोक देवलोक से भी विशेष भाग्यवान हो गया है।" ___ उक्त प्रकार के इन्द्र के वचन सुन दो मिथ्यात्वी देव बोले " -महारान ! आप हमारे स्वामी हैं, इसलिए हम आप की हामें हा, भले मिला दें। मगर वास्तव में तो हमारा हृदय यह
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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