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________________ ( 149) सुन कर यशा को जरा संतोष हुआ। उसने कहा:-" हे पुत्र ! यहाँ गजमान्य नवीन पंडित के भय से तुझ को कोई नहीं पढ़ावेगा / इस लिए तु श्रावस्ती नगरी में जा / वहाँ तेरे पिता का इन्द्रदत्त नामा मित्र रहता है। वह तुझ को पढ़ावेगा।" माता की आज्ञा लेकर कपिल श्रावस्ती नगरी में इन्द्रदत्त उपाध्याय के पास गया और उसको अपना सारा हाल सुनाया। सुनकर इन्द्रदत्तने सोचा-" यह मेरे मित्र का पुत्र है इसलिए इसको पढ़ाना मेरा कर्तव्य है।" ____ तत्पश्चात् उसने शालिभद्र नामा एक दानवीर सेठ के यहाँ उसके खानपान का प्रबंध करादिया और उसको पढ़ाना प्रारंभ किया। अध्ययन के प्रतापसे उसके विद्वान् बनने के चिन्ह दिखाई दिये। मगर कर्म बड़ा विचित्र है / यौवनावस्था के कारण सेठके घर की एक दासी के साथ उसका संबंध होगया / कुछ दिन के बाद दासी को गर्भ रहा। दासीने एक दिन कपिलसे कहा:-" मैं तुमसे गर्भिणी हुई हूँ / इसलिए उसकी प्रसूति का मार तुम्हारे सिर है। कुछ रुपयों की आवश्यकता होगी।" ___ दासी के वचन सुनकर विचारा कपिल घबराया। उसको रातभर नींद न आई / दासी को यह हाल मालुप हुआ।
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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