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________________ ( 123 ) अर्थ का नाश होना मूर्खता है / शास्त्रकारों का यह कहना बिलकुल ठीक है / आत्मा के अर्थनाश की संभावना माया से होती है / इस लिए माया का त्याग करना उचित है। माया के महादोष ही से मल्लिनाथ के समान तीर्थकर को भी स्त्री वेद की प्राप्ति हुई है / कहा है कि: दम्भलेशोऽपि मल्ल्यादेः स्त्रीत्वानर्थनिबन्धनम् / अतस्तत्परिहाराय प्रतितव्यं महात्मना / भावार्थ-श्री मल्लिनाथ तीर्थकर आदि महा पुरुषोंके लिए भी, माया का लेश, स्त्री वेदादि अनर्थ का कारण हुआ, इस लिए महात्मा पुरुषों को चाहिए कि वे दंभ के नाश का प्रयत्न करें / किया हुआ कर्म तीन लोक के नाथ को भी नहीं छोड़ता है, तो फिर दूसरे मनुष्यों की तो बात ही क्या है ? श्री मल्लिनाथ स्वामी के जीव का दंभ धर्म की वृद्धि के लिए था। उस का संक्षेप में यहाँ कथन किया जाता है “श्रीमल्लिनाथ स्वामी तीर्थकर हुए इसके तीन भव पहिले वे अपने मित्रों के साथ तपस्या करते थे। उस समय उनके मनमें आया कि मैं अपने मित्रों की अपेक्षा ऊँचा दर्जा प्राप्त करूँ तो अच्छा हो, इस विचार को कार्य में परिणत करने के लिए उपवास के अन्त में पारणे के समय वे कह देते कि-"तुम
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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