SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूषण समझे जाते हैं, परन्तु येही यदि साधुओं के पास होते हैं. तो उनके लिए दूसण हो जाते हैं। गृहस्थी घोडागाड़ी, मोटर आदि वाहनों पर चढ़ते हैं तो उन के लिए यह शोभास्पद होता है; परन्तु यदि साधु इन पर स्वारी करते हैं तो वे निन्दा के माजन बनते हैं। तमाम विचारशील योगी, भोगी, ज्ञानी, ध्यानी और अभि-.. मानी यह बात स्वीकार करेंगे-युक्ति पूर्वक स्वीकार करेंगे किरेल में सवारी करनेवाला अपने धर्म को सुरक्षित नहीं रख सकता है। रेल की सवारी किये हुए किसी भी व्यक्ति को-पट दर्शनों में से किसी भी दर्शन के माननेवाले को-पूछिए वह अनुभव सिद्ध यही बात कहेगा कि-रेल में धर्माचार की रक्षा नहीं हो सकती है। जब गृहस्यों के लिए यह बात है तब साधुओं के धर्माचार सुरक्षित न रहे इस में आश्चर्य ही क्या है / यह बात निश्चय है कि षट्दर्शन के सब साधुओं के नियम समान ही हैं जैसे-अहिंसा, सत्य, चोरी नहीं करना, ब्रह्मचर्य और निस्पृहता / श्रीमद हरिभद्रसूरिनी महाराज फर्माते हैं: पञ्चैतानि पवित्राणि सर्वेषां धर्मचारिणाम् / अहिंसासत्यमस्तेयं त्यागो मैथुनवर्ननम् // भावार्थ-सारे धर्मानुयायियों के लिए पांच (व्रत) पवित्र हैं।
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy