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________________ २-मूर्तिमान शान्नरस अपने भाई को भरतने नमस्कार किया। उस समय उसकी आँखोंसे कुछ गरम आँसू की बूंदे निकल पड़ीं। वे ऐसी मालूम हुई मानो उसने अपने हृदय में बचे हुए कोप को आँसुओं के द्वारा निकालकर फेंक दिया है। ३-बाहुबली मुनि के गुणों का स्तवन करने के बाद, अपने अपवाद रूपी रोग की महा औषधि आत्मनिंदा करने लगे। भरत महाराजने अपने अपवाद रूपी रोग को शान्त करने के लिए आत्म-निंदा करते हुए बाहुबली मुनिसे इसभाँति क्षमा माँगने लगे: धन्यस्त्वं तत्त्यजे येन राज्यं मदनुकम्पया। पापोऽहं यदसन्तुष्टो दुर्मदस्त्वामुपाद्रवम् // 1 // स्वशक्तिं ये न जानन्ति ये चान्यायं प्रकुर्वते / जीवन्ति ये च लोभेन तेषामस्मि धुरंधरः // 2 // राज्यं भवतरोर्नीनं ये न जानन्ति तेऽधमाः / तेभ्योऽप्यहं विशिष्ये तदनहानो विदन्नपि // 3 // त्वमेव पुत्रस्तातस्य यस्तातपन्यमन्वगाः / पुत्रोऽहमपि तस्य स्यां चेद् भवामि भवादृशः // 4 // ___भावार्थ हे बन्धु मुझ पर दया करके तुमने राज्य छोड़ दिया इसलिए तुम धन्य हो ! मैं पापी हूँ जिस से कि, मैंने असन्तोष और दुर्मद के वश में होकर तुम को कष्ट पहुँचाया।
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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