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________________ (87) मंत्रियों की बातों से, और चक्ररत्न के आयुधशाला में प्रवेश नहीं करने के कारण से, भरतने बाहुबली के पास दूत भेजा / दूत वाहलिक देश को देख कर चकित हो गया। वहाँ उसने हजारों चमत्कार देखे / उस देश में भरत का कोई नाम भी नहीं जानता था / 'भरत' शब्द का व्यवहार स्त्रियों की साड़ियों में और काँचलियों में जो काम किया जाता था उसीके लिए होता था / धीरे धीरे वह दूत उस देश की मुख्य नगरी 'तक्षशिला' में पहुँचा / बाहुबली की आज्ञा मँगवा कर उसने दौर में प्रवेश किया / साम, दाम, दंड और भेदवाले वचनों से दूतने यथायोग्य अपना कार्य किया। बाहुबली दूत की बातों से कुपित हुए; परन्तु दूत को अवध्य समझकर, उस को अपमान के साथ सभा से बाहिर निकलवा दिया। दूतने वापिस जाकर, निमक मिरच लगाकर घटित घटना सुनाई / और भरत राजा को लड़ने के लिए तैयार किया। बाहु. बली भी उधर लड़ने को तैयार हो गये। पूर्व और पश्चिम समुद्र आकर जैसे एकत्रित होते हैं वैसे ही दोनो तरफ की सेनाएँ आमने सामने आ खड़ी हुई / युद्ध प्रारंभ होने में केवल आज्ञा ही की देरी थी। उस समय देवता, यह सोच कर बीच में पड़े कि
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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