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________________ सेठियाजैनप्रन्यमाला उस के मन को प्रसन्न कर दो। 47 रात के समय जब कि लोग अपने घरों में सो रहे हों, उस समय बाजार में जोर जोर से बात करते हुए निकलना या दूसर। कोई उन की नींद में हानि पहुँचाने वाला कार्य करना बिल्कुल अनुचित है / 48 यदि अपने से कोई अपराध बन जावे तो उसे निर्भयता पूर्वक स्वीकार कर लो / अपराध स्वीकार करना आत्मा को उन्नत बनाना है। जिसका अपराध तुम्हारे द्वारा हुआ हैं, उससे तुरन्त क्षमा गांग लो / 46 किसी की धरोहर (अमानत) रखी हुई वस्तु, विना मालिक की मंजूरी के काम में न लाओ, न गिरवी रकग्वो और न बेचो / 50 रेल के डब्बे में बिना किसी विशेष कारण के लोगों के बैठने के स्थान पर टांगें फैलाकर या अपना सामान फैलाकर न बैठो और न लेटो / क्या यह ठीक है कि एक भाई तो खड़ा हो और तुम आराम से बैठने की जगह टांगें फैलाये रहो या अपना सामान रखे हुए आराम से बैठे रहो या लेटे रहो ? इसे असभ्यता कहते हैं। 51 यदि किसी मनुष्य को तुम्हारा पैर छु जावे तो उससे हाथ जोड़कर अपनी इस गलती के लिये क्षमा मांग लो / 52 रेल के डब्बे में अगर बैठने के लिए जगह खाली हो तो अपने आराम के लिये दूसरों को आने से मत रोको, लड़ाई झगड़ा मत
SR No.023531
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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