SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सेठियाजैमग्रन्थमाला 105 मनुष्य गुणवान् न भी हो, लेकिन दूसरे लोग उसके गुण की प्रशंसा करें, तो वह मनुष्य गुणवान् कहा जाता है / यदि इन्द्र अपने मुव से अपनी प्रशंसा करे तो वह भी लघु ममझा जाता है / तात्पर्य यह है कि लोग जिस की प्रशंसा करें वही सच्च। गुणवान् है। 106 विचारवान् मनुष्य को पाकर गुण बड़ी भारी शोभा पात हैं / जैसे रत्न को सोने में जड़ देने पर रत्न की शोभा स्वयं बढ़ जाती __ . 107 जो मनुष्य अकेला है, जिस की किसी का सहारा नहीं है / वैसा मनुष्य कितना ही चतुर क्यों न हो तो भी वह दुःख पाता है। क्योंकि बहुमूल्य मणि को भी सोने का सहारा लेना पड़ता है / -- 108 जो धन अत्यन्त क्लेश से, अपने धर्म को छोड़ने में या शत्रुओं की खुशामद करने से मिले, ऐसे धन का त्याग करना है। ठीक है। उपदेशमणि-माला ( 1 ) तिनका सबसे छोटा होता है, तिनके से रुई हल्का होता है, रुई से भी हल्का मांगने वाला है, जिस हवा भी उड़ा कर नहीं
SR No.023531
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy