SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (78) सेठियाजैनप्राधमाला रस्न मौजूद हैं। 72 जो जिस के हृदय में बसा रहता है, यदि वह दूर भी हो, तो दूर नहीं है, किन्तु जो जिसके हृदय में नहीं हैं, यदि वह पास भी हो तो भी दूर ही है। 73 यदि तुम चाहते हो कि अमुक मनुष्य तुम से प्रिय वचन बोले, तो तुम्हें चाहिए कि तुम स्वयं उससे प्रिय वचन बोलो; क्योंकि शिकारी हिरन को वश में करने के लिए मीठे स्वर से गाना गाता है, तब हिरन प्रेम के मारे उसके पास स्वयं चला भाता है। ___74 राजा अग्नि गुरु और स्त्री, ---ये चार ऐसे हैं कि यदि इनके बिल्कुल पास ही रहो तो विनाश कर देते हैं और यदि बहुत दूर रहो तो कुछ फल नहीं देते; इसलिए उपरोक्त इन चारों को मध्यम अवस्था से सेवन करना चाहिये। 75 अग्नि, जल, स्त्री, मूर्ख, सर्प, और राजकुल, इन को सदा सावधानी से सेवन करना चाहिये क्योंकि ये चारों ही तत्काल प्राण लेने वाले हैं। 76 वही जिन्दा हैं जो गुणवान् है, वही जिन्दा है जो धर्मात्मा है / गुण हीन और धर्म हीन मनुष्य का जीना व्यर्थ है। 77 यदि एक ही काम से सम्पूर्ण जगत् को अपने वश करना चाहते हो, तो पहले पांच ज्ञानेन्द्रिय (आंख कान नाक जीभ
SR No.023531
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy