SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (50) सेठियाजैनग्रंथमाला ... 35 कमाये हुए धन की रक्षा दान से ही होती है, जैसे तालाब का जल निकलता रहे तो साफ रहता है और न निकलने पर गदा हो जाता है / 36 अत्यन्त क्रोध, कटुवचन, दरिद्रता अपने कुटुम्बियों से बैर, नीच का संग, कुलहीन की सेवा ये चिह्न प्रायः नरक से पाये हुए मनुष्य में पाये जाते हैं। 37 यदि कोई सिंह की गुफा में चला जावे तो उसे हाथी के मस्तक के मोती मिलते हैं और सियार के रहने के स्थान में चले जाने पर बछड़े की पूंछ और गदहे के चमड़े का टुकड़ा मिलता है, अर्थात् बड़े के यहां जाने से लाभ होता है, क्षुद्र के यहां जाने से नहीं। 38 विद्यारहित जीवन कुत्ते की पूंछ के समान व्यर्थ है, जैसे कुत्ते की पूंछ न तो गोप्य इन्द्रिय को ही ढक सकती है और न मच्छड़ भादि जीवों को ही उड़ा सकती है, वैसे ही विद्या विना का जीवन न तो इस लोक के कर्त्तव्य को समझता है और न परलोक के कर्तव्य को / 36 मन और वचन की पवित्रता, इन्द्रिय दमन, प्राणिमात्र पर दया, ये परोपकारियों की सुद्धिक चिह हैं। 40 जैसे पुष्प में गंध, तिल में तैल, काठ में भाग, दूध में घी, ऊख में गुड़ है, वैसे ही देह में भात्मा है। उसे विवेकदृष्टि से देखो।
SR No.023531
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy