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________________ (32) सेठियाजैनग्रन्थमाला (१६)आहार निद्रा भय और मैथुन ये चार बातें मनुष्य और पशु में समान हैं। जो इन में अनुरक्त रहता है, वह पशु ही है लेकिन जो अहिंसा सत्य क्षमा मार्दव आर्जव सत्य शौच शान्ति भक्ति विरक्ति ज्ञान त्याग आदि धर्म स्वरूप दैवी गुणोंका अनुसरण करता है, वह मनुष्य नहीं देव है / (२०)स्वर्गके अलौकिक सुखका अनुभव तथा नरकके दारुण दुःख का भोग ये दोनों बातें हमारे ही हाथ में हैं। जो अपना मनुष्य दोष या तिरस्कारका पात्र होता है,इसमें हमारा ही दोष है। (२१)कोमल वृक्षको जैसा चाहे वैसा नवा सकते हैं,इसी तरह बालकों के अन्तःकरण पर माता पिता तथा शिक्षक जैसे संस्कार डालना चाहें, डाल सकते हैं; इसलिए इस विषय में माता पिता तथा शिक्षक को पूरा खयाल रखना चाहिए / __ (२२)बालक जिसके साथ रहते हैं,उसका असर उसके चारित्र पर विशेष पड़ता है / वालक जैसा देखता है, वैसा ही करता है; क्योंकि बालक अनुकरणशील होते हैं; इसलिए माता पिता तथा शिक्षकों पर बालक की शिक्षा की पूरी ज़िम्मेदारी है / (23) बालकों का हृदय सफेद दीवार के समान है / उस पर विद्वान् चित्रकार जैसे चाहे वैसे सुन्दर 2 चित्र बना सकते हैं; लेकिन एक वार चित्र बन जाने पर, वह वज्रलेपसा हो जाता है; इसलिए उस पर जैसा चित्र बनाना हो, उस का पूरा
SR No.023531
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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