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________________ सेठियाजैनग्रन्थमाला विचार करना चाहिए और भूल ढूँढनी चाहिए / जिस समय चित्त में विकार हो जाय, उस समय अपना ही दोष जानकर, भूल को सुधारना चाहिए। 40 हरएक आत्मा अपनी रक्षा करने में लगे रहते हैं / उन्हें जो कुछ दिखाई देता है, उसे ग्रहण कर लेते हैं, इस बात से उन को लघु समझना उचित नहीं / उस भूल से उसी को हानि उठानी पड़ेगी। भूल सुधारने के लिए प्रयत्न करना हमारा कर्तव्य है / 41 कर्म में भेद है, आत्मा में भेद नहीं / व्यवहार चलाने के लिए कर्म भेद की ज़रूरत है / 42 कठिनता आने पर स्थान न छोड़ना चाहिए, किन्तु धीरता पूर्वक सहन करना चाहिए / अच्छा संयोग भाग्य से ही मिलता है। कठिनता तुम्हारी कसौटी है / तुम कितने आगे बढ़े, इस की परीक्षा करने वाली है। 43 क्लेश उत्पन्न हो जावे तब अपनी अवश्य भूल हुई समझना चाहिए / गुण को औगुण या औगुण को गुण मानने से क्लेश पैदा होता है / उस भूल को निकाल कर दूर करने पर ही शान्ति प्राप्त हो सकती है। 44 चित्त में शांति और शरीर में प्रवृत्ति वनाये रक्खो। कहीं पर विना इच्छा के काम करना पड़े, वहां कर्म का उदय समझ कर काम करो; किन्तु नाराज होकर काम न करो।
SR No.023531
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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