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________________ दीक्षा आपो, हुं आपनो शिष्य छ. केमके वादमा सभ्योनी समक्ष मने आपे जीत्यो छे." ते सांभळीने बहुमानथी गुरु बोल्या के-" आ वादमां जय शेनो ? माटे आपणे मनोहर भृगुपुरमा घणा प्रमाणिक पुरुषोथी भरपुर अने प्रभाववाळी राजसभामा जइए. त्यांज आपणो वाद हो. " सिद्धसेने कह्यु के-" हुं समयनो अजाण छ. आप समयने जाणनार छो, अने जे समयने जाणे छे तेज सर्वज्ञ छे, माटे आपज जीत्या. मने जलदी दीक्षा आपो, अने प्रशम रसथी भरेला पोताना ( आपना) सिद्धांत मने भणावो." आ प्रकारे वोलता ते वादीने वृद्धवादीए तेज ठेकाणे दीक्षा आपी. ___ आ वृत्तांत जाणीने भृगुपुरना राजाए ते स्थाने " तालारस" नामनुं मोटुं गाम वसाव्यु, अने त्यां जनना चित्तने आल्हाद करनारं श्री ऋषभस्वामीनुं मोडं चैत्य कराव्यु. ते चैत्यमा श्री वृद्धवादीए प्रतिष्ठा करी. जैन मतनी ते वखते मोटी उन्नति थइ. सिद्धसेननु नाम दीक्षा समये “ कुमुदचंद्र " हतुं, अने सूरिपद समये "सिद्धसेनदिवाकर" एवं नाम प्रसिद्ध थयु. अपर अपर पूर्वधरोथी पूर्वमांरहेला श्रुतना अभ्यासवडे एवां नामो आपवामां आवे छे. कहुं छे के-" वादी, क्षमाश्रमण, दिवाकर अने वाचक ए सर्व शब्दो एक अर्थवाला छे. पूर्वगत सूत्रना अभ्यासथी ए शब्दो प्रवर्ते छे." स्वामी अने पाचक विगेरे शब्दोनी जेम दिवाकर एं पण सूरिनुंज पर्यायी नाम छे. सिद्धसेन दिवाकर जैनमतनो उद्योत करवाथी पोताना नामने सार्थक करता पृथ्वीपर विहार करवा लाग्या. अनुक्रमे तेओ उज्जयिनी
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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