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________________ (७३) तथा हमेशा प्रयत्नपूर्वक तेने भणाववा लाग्या, तोपण ते नवकार मंत्र नुं एक पण पद शीखी शक्यो नहीं. अने नानो गुरुदत्त तो हृदयना अभिप्रायने जाणवाथी बृहस्पतिनी जेम थोडा दिवसमांज सुखे करीने सकल शास्त्रसमुद्रनो पारगामी थई सर्व विद्वानोमां मुगटसमान थयो, अने अनुक्रमे ते सम्यक् प्रकारे श्राद्ध धर्मनी समग्र क्रियानुं जाणपणुं तथा उत्सर्ग अने अपवाद मार्गनुं जाणपणुं ए विगेरे गुणोए करीने जिनशासनने विषे अनुपम कुशळताने पाम्यो. " अहो ! ज्ञानना आराधन अने विराधननो कोइ (अलौकिक.) अनिर्वाच्य विपाकोदय छे." त्यार पछी ते बन्ने भाइओ लोकमां अनुक्रमे राहु अने सूर्यनी, लोढानी कडाह अने चंद्रनी, रात्री अने दिवसनी, अमावास्या अने पूर्णिमानी, अंगारा अने सुवर्णनी, धत्तूरो अने चंपक पुष्पनी, केरडो अने कल्पवृक्षनी, मेश अने दूधनी, काक अने कोयलनी, बग अने हंसनी, कलियुग अने सत्युगनी, दुर्जन अने सजननी तथा गर्दभ अने हाथीनी-विगेरे उपमाओने पाम्या. अहो ! सहोदरपणु छतां पण विष अने अमृतनी जेम ए बन्ने बच्चे मोडं अंतर पडद्यु. पछी दुर्दैवे करेला पंक्ति भेदे करीने चित्तना अत्यंत उद्वेगमां मग्न थयेलो देवदत्त अत्यंत दुःख ह एवा केवळ दुःखनेज चित्तमा धारण करवा लाग्यो. एकदा कोइ ज्ञानीने तेना पिताए तेनो प्राग्भव पूछ्यो, त्यारे ज्ञानीए यथार्थ पूर्व भव कह्यो. ते सांभळीने देवदत्त पोताना मनमा अत्यंत पश्चात्ताप करवा लाग्यो. पछी सुकृत करवामां ज एक चित्तचाळा थइने तेणे गुरुने का के-“हे भगान् ! माशं दुष्कर्मोनो क्षय
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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