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________________ (६८) तो सामाचारीओमा ज देखाय छे कोड सिद्धांतमा साक्षात् ( स्पष्ट वचनवडे) देखातो नथी. तेथी साधुना योगवहनना विधिनी जेम श्रावकोना उपधानोमां पण पौषध ग्रहण करवा विगेरेनो विधि प्रमाण करवा योग्य छे. आथी करीने एम सिद्ध ययुं के साधुओए तथा श्रावकोए बीजी सर्व तपस्याओ करतां प्रथम अवश्य कर्तव्यपणे करीने उपधान तप आरांधवा लायक छे. जे मनुष्यो आजीवीकाने माटे, गृहकार्यादिकनी अत्यंत व्यग्रताने लीधे अथवा प्रमाद विगैरे कारणने लीधे उपधाननुं वहन करता नथी, तेओने नवकार गणवा, देववंदन करवं, इर्यावही पंडिकमवा, प्रतिक्रमण कर विगेरे क्रियाओ जीवन पर्यंत कदापि शुद्ध थती नथी. अने भवांतरे पण तेमने ते क्रियाओनो लाभ मळवो असंभवित छ, केमके ज्ञानना विराधकोने ज्ञाननी दुर्लभता प्रतीत थाय छे. तेथी ज्ञानना आराधननी इच्छावाळाए उप-- धान विधिमा यथाशक्ति यत्न करवो. साधुओना उपधान [योग] विषे दृष्टांत. गंगा नदीने कांठे कोइ आचार्य घणा शिष्याने निरंतर भणाववाथी तथा तेमना प्रश्नोना उत्तर आपवाथी रात्रे पण विश्रांति पामता नहीं. तेथी पोतानी साथे ज दीक्षित थयेला पण थोडं भणेला पोताना भाइने स्वेच्छाए निद्रादिक सुखने भोगवता जोइने ज्ञान उपर आदर रहित थइ विश्राम लेवानी इच्छाथी स्वाध्यायने वखते पण अस्वाध्यायनो समय छे एम कहेवा लाग्या. ते ज्ञानातिचारनी आलोचना कर्या
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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