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________________ (६४) परंतु तेवी रीते ज ग्रहण कर के जेथी भवांतरमां पण ते नाश पामे नहीं. एवा शुभ अध्यवसायपणाने लीधे ते आराधकज थाय. " फरीथी गौतम स्वामी भगवानने पूछे छे के-“हे भगवान ! बीजाने भणता सांभळीने ज जेओने श्रुतज्ञानावरणना क्षयोपशमने लीधेपंचमंगळ (नवकार ] कंठे थइ जाय छे, तेमने पण शुं तप उपधान करावq ?" भगवान् कहे छे-" हा, तेने पण कराक्वं." गौतम स्वामी पूछे छे. " हे भगवान् ! तेने शामाटे उपधान करावयूँ ?" भगवान् कहे छे"हे गौतम ! सुलभबोधिपणानी प्राप्तिने निमित्ते तेने पण उपधान कराव. ए प्रमाणे नहीं करनाराने ज्ञानकुशीलीया जाणवा." - अहीं कोइ शंका करे के-श्री आवश्यक सूत्रमा नमस्कारने सामायिकना अंग तरीके कहुं छे, अने महानिशीथमां महा श्रुनस्कंध तरीके कयुं छे. ते बन्ने शी रीते घटे ! एनो जवाब ए छे के-जेम आव. श्यक सूत्रना पहेला अध्ययननी नियुक्तिमां जूतुं वतावेखें सामायिक पहलु अध्ययन कहेवाय छे, अने तेज (सामायिक) प्रतिक्रमण नामना चोथा अध्ययनमा तेना एक देश (एक भाग) पणे देखाय छे. ए ज प्रमाणे नमस्कार पण ज्यारे सामायिकना आरंभमां बोलाय त्यारे तेने जूदं श्रुतस्कंघ जाणवू, वळी महानिशीथ सूत्र बीजां श्रुत करतां वधारे विशिष्ट छ एम जणाय छे. केमके तेना अगाढ योग छ, अने तेमा पीस्तालशि आंबील एक साथे करवामां आवे छे. तेथी बीजा योगोना तप करतां तेना योगनो तप अति दुष्कर छे, माटे तेनुं उत्कृष्टपणुं सि. द्ध थाय छे. आ (उत्कृष्टपणाना) कारणने लीधे पण जेओ महानिशी
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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