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________________ (६०) विशति स्तव (लोगस्स) एक छठ, एक उपवास अने पचवीश आबिलवडे भगवं. ५ तथा ज्ञानस्तव (श्रुतस्तव ने सिद्धस्तव ) एक उपवास अने पांच आंबिळवडे भणं. ६" इस्यादि.* ___ उपर प्रमाणे उपधाननुं बहन कर्या पछी उत्तम एवं तिथि, करण, मुहूर्त, नक्षत्र, योग, लग्न अने चंद्रनुं बळ होय त्यारे शक्ति अनुसार जगदगुरु श्रीजिनेश्वरनी पूजा करीने तथा मुनिवर्गने प्रतिलाभीने गुरुसहित साधु, साध्वी, सा(मक अने बंधुवर्गने साये लइने वाजते गाजते प्रथम गामना चैत्योने वंदना करवी. त्यार पछी गुणवान् साधुओर्नु तथा साधर्मिक जनोनु पोतानी शक्तिममाणे प्रणाम विगेरे करवायी तथा सूक्ष्म, बहु मूल्यवाळां, कोमळ अने उज्वळ वस्त्र विगेरेयी महा सन्मान करवु. पछी गुरुए धर्मदेशना आपवी. पछी अत्यंत श्रदा अने संवेगवान् ते श्रावकने यावजीवनो अभिग्रह आपवो के “तारे आजथा आरंभीने जीवन पर्यंत त्रणे काळ दररोज चैत्यवंदना करवी (दर्शन पूजा करवी) विगेरे." पछी मंत्रेली गंध मुष्टिओ सातवार तेना मस्तकपर 'निथारगो भविजासी' 'तुं निस्तारक था' (संस.र ममुद्रनो पार पाम ) एम बोलतां गुरुए नाखवी. पछी चतुविध संघ पण तेना मस्तकपर गंध मुष्टिओ नांखवी त्यारपछी गुरुए जगद्गुरु श्रीजिनेश्वानी करेली पूजाना एक भागपाथी सुगंधवाळी, * आमां पेहेलु, बीजूं, चोथु ने छठं उपधान एक साथे वहन करवामां जावे छे, अने त्रीजुं ने पांव उपधान त्यार पछी जुदुं जुएं पण वहन करी शकाय छे.
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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