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________________ ( ४२ ) वो - नवां पुस्तको लखवां, लखाववां तथा शुद्ध कराववां; पुंठां, पोथी बंधन अने बांधवानी दोरी विगेरे साहित्यो उत्तम उत्तम (सारं सारां) एकठां करवां, तथा नाश पामतां पुस्तकोने लखावी लेवां, तेने शोधाववां तथा कपूर, हीरागळ ( रेशमी ) वस्त्र विगेरेवडे तेनुं पूजन करवुं विगेरे. शास्त्रमां कहां छे के - " त्रण जगत्ना सूर्यरुप सर्व जिनेश्वरो अस्त पाम्या छे, तेथी आधुनिक समयमां पुस्तकरूप दीवा - बडे पदार्थोंने विषे सारो प्रकाश पाडी शकाय छे." विनय ए लोकमां तथा लोकोत्तरमां सर्व ठेकाणे सर्व अर्थनी सिद्धिमां अवंध्य कारण छे. ते विषे कां छेके - " विनय लक्ष्मीने आपे छे, विनयवान् पुरुष यश अने कीर्त्तिने पामे छे. विनयरहित माणस कदापि पोताना कार्यनी सिद्धिने पामतो नथी. " लोकमां पण सेवको, शिष्यों, पुत्रो, बहुओ विगेरे सर्वे विनययीज पोताना स्वामीनी पदवी पामता जोवामां आवे छे अने विनय रहित एवा ते सेवको विगेरे विपरीत दशाने पामता पण जोवामां आवे छे. बळी गायो, भेंशो, बळदो, घोडाओ विगेरे पशुओ पण दुर्विनयने लीघे बंधन ताडनादिक कुशने पामता देखाय छे, अने तेओ जो विनयवान् होय तो क्लेश पाम्या बिना सुखे सुखे खावा पीवानुं तथा मान सत्कार पामता देखाय छे. वळी विद्या, विवेक, औदार्य, गांभीर्य, चातुर्य, धैर्य, प्रख्याति, प्रतिष्ठा विगेरे गुणोनुं मूळ कारण विनयज छे. केमके विनय होवाथीज ते ते गुणोनो संभव छे, अन्यथा नथी. कहुं छे के - " सर्व सुखनुं मूळ कारण क्षमा छे, सर्व दुःखोनुं मूळ कारण क्रोध छे, सर्व गुणानुं मूळ कारण विनय
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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