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________________ छे ?" त्यारे ज्ञानी गुरु बोल्या के-" हे राजा ! ते बनेनुं प्राधान्य छे. केमके आ जगत्मा कोइ ठेकाणे जीव बळवान् थाय छे, अने कोइ ठेकाणे कर्म पण बळवान् थाय छे. कह्यु छ के- जीवने तथा कर्मने अनादि काळथी वैर बंधायलुं छे. तेमां जीवो खरेखर कर्मनेज वश छे, परंतु कोइक वखत कर्मों पण जीवने वश थाय छे. केमके कोइक ठेकाणे धारण करनार ( आधार बळवान् होय छे, अने कोइ ठेकाणे धारण करवालायक ( आधेय ) बस्तु बळवान् होय छे. जो के कर्म संसारमा भमता जीवोने अत्यंत दुःख आपे छे, तो पण धर्मनो उद्योग ते सर्व कमने पण हणी नाखे छे. अन्यथा अनंतानंत भवोवडे संचय करेला अनंतां कर्मोंने हणीने अनंता जीवो शाश्वता मोक्षने केम पामे ? कुकर्मने करनार " दृढमहारी " अने " चुलणी " उद्यमथीज मोक्षे गया छे, तथा " चिलातीपुत्र" अने " रोहणयक" विगेरे पण उद्यमथीज स्वर्गे गया छे. तेथी करीने धर्मार्थी पुरुषो अनिष्ट एवा उग्र कर्मना क्षयने माटे निरंतर उद्यम कयोज करे छे. आ रीते कोइ वखत उद्यम पण बळवान् थइ शके छे. कहुं छे के-"प्राणीओने सर्व कार्यमां हमेशां उद्यमनेज परमबंधु कहेलो छे, कारण के उद्यमावना मनुष्य मनोवांछितने मेळवी शकतो नथी." जो कदाच विविध प्रकारना उद्यमो कर्या छतां पण कार्य सिद न थाय, तो त्यां अवश्य तीव्र कर्मज भोगववालायक अने समर्थ छे एम जाणवू. वळी महावीरस्वामीनो नीच कुळमां अवतार. मल्लीनाय स्वामीन स्वीपणे उत्पन्न थQ, परीक्षित राजानुं मरण तथा नंदिपेण अवे
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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