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________________ (२०) करीने काइक विलंब करी कर्मवादी प्रत्ये बोल्यो के-" हे भाइ ! होआपणे आ स्थळे शुं करवा योग्य छे, ते कहो." कर्मवादीए जवाब आप्यो के-" पोतानी मेळेज सौ सारा वानां थशे. सुखेथी बेसी रहो, अथवा सुखथी हरो फरो. परंतु हुं तो कभनेज प्रमाण करीश." पछी उद्यमवादी तेना वचननी अवगणना करीने उभो थइ विचार करवा लाग्यो के-"आ घरमां कांइ पण खावा योग्य वस्तु होय तो शोधी लउं." एम विचारीने ते खोवायेली वस्तुनी जेम घरमां चेतरफ जोचा लाग्यो. तेवामां ते ओरडामा उपराउपरी गोठवेलां हांल्लांनी उत्रेडमां जोतां वचला माटलामाथी वस्त्रना छेडाने खेचता वस्त्रमा वीटेला घणा घीवाळा, हर्षकारक, चार लाडु जोवामां आव्या. पछी “ हुं मारा उद्यमनुं फळ आ पुरुषने देखाडं." एम धारीने तेणे गणपतिनी आगळ जेम लाडु धरे तेम पेला कर्मवादीनी पासे ते लाडु भूक्या, अने बोल्यो के-" जुओ ! हाथे पगे पांगळा पुरुषनाज जेवं कर्म छे के नहीं ? केमके ते कर्मवडे पोतार्नु कांइ पण कार्य सिद्ध थतुं नथी. आ प्रत्यक्ष उद्यमनुंज मोठं फळ देखाय छे." ते सांभळीने कर्मवादी हसीने बोल्यो के-" तमे जे मोटा कष्टथी फळने प्राप्त कर्यु, ते मारी पासे लावीने मूक्युं, ते मारा कर्मनुज फळ छे, प्रसन्न थयेला मारा कर्मेज तमने पण आ उद्यम करवानी बुद्धि आपी छे. जो एम न होय, तो तुं पण मारी जेम बेसीज रह्यो होत. पण तने स्वस्थपणे बेसवा न दीधो, एज मारा कर्मर्नु पराक्रम जाण. माटे मारे तो कर्मज प्रधान छे, उद्योगादिक काइपण
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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