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________________ ( १८ ) दिवस तेमनी माताओए तेमने विशेष आभूषणादिकवडे शणगारीने राजा पासे मोकली, सभामंडपमां बेठेला राजाए कमळ उपर हंसीओनी जेम तेमने पोताना उत्संग ( खोळा ) मां बेसाडी पछी प्रश्नोत्तर आदि अनेक प्रकारनी पृच्छा ओना ते बन्ने कन्याओए साक्षात् सरस्वतीनी जेम तत्काळ उत्तर आप्या. पछी राजानी आज्ञाथी मोटा मोटा पंडितोए पण तेमनी कळा कुशळतानी परीक्षा माटे अनेक प्रकारना प्रश्नो पुछया. ते दरेकना जवाबो पण ते बन्ने कन्याओए घणाज संतोषकारक आप्या, १ 6: त्यार पछी राजाए पोते बन्ने कन्याओने कहां के - " मारा प्रश्ननो जवाब तमे बेउ बराबर आपो के - कर्म (प्रारब्ध ) अने उपक्रम (उम ) ए मां मुख्य कोण ? पहेलुं के बीजं ? के ते बन्ने समान छे ? ते कहो. " त्यारे पहेली कन्या बोली के पराक्रमनी जेम सर्व स्थळे उपक्रमज ( उद्यमज ) फळ साधननुं कारण छे. उपक्रमविनानुं कर्म (प्रारब्ध) निष्फळ छे. भोजन, वस्त्र, धन उपार्जन, अन्यनुं वशीकरण, शत्रुनो नाश, विद्यानी प्राप्ति अने राज्यनो लाभ इत्यादि सर्व कार्य उद्यमीज सिद्ध थाय छे. कां छे के - " उद्यमवडज सर्व कार्य सिद्ध थाय छे, पण मनोरथोवडे सिद्ध थतां नथी, केमके सूतेला सिंहना मुखमा पोतानी मेळेज मृगलां प्रवेश करतां नथी. तेथी बिलाडीनी जेम निरंतर उद्यमज करवो. जेम के बिलाडो जन्मथीज तेनी पासे गाय १ आ स्थळे घणा प्रश्नोत्तरो विस्तारवाळा छे, पण ते शाना अभ्यासीनेज उपयोगी होवाथी अहीं लख्या नथी. जिज्ञासुए आचारप्रदीप प्रथमांथी ते वांची लेवा.
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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