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________________ ( २३५ ) छे, तेनो प्रभुने समयान्तर उपयोग छे, ( तेथी ) पहेला समये विशेपपणे जाणे छे अने बीजे समये सामान्य धर्मनो सम्बन्ध होय छे. || ५ || सादि अनन्त भांगाए करी अनन्त दर्शन, ज्ञान अने तेरमुं गुणठाणं पामीने भावजिनेन्द्र जयवंता वर्ते छे || ६ || ( ते वखते ) कर्मनी मूळ (आठ) प्रकृतिमांनी एक ( वेदनीय) प्रकृतिनो बन्ध याय छे अने सत्ता तथा उदयमां चार ( वेदनीय, नाम, गोत्र ने आयु) प्रकृति होय छे. उत्तर प्रकृति १२०) मांथी एक (शाता) नो बन्ध होय छे, उदयमां (१२२ मांथी) बेताळीश प्रकृति रहे छे, ||७|| सत्ता ( १४८ मांथी ) पंचाशी प्रकृतिनी छे. ( ते वखते ) कर्म बाळेली दोरडीना छार जेवा होय छे. जे प्रभुना मन वचन कायाना योगो अचल तथा विकार रहित छे, तेओ सयोगि केवलिनी दशाने प्राप्त करी ते दशामां विचरे छे. केवलज्ञानना अक्षय विजय लक्ष्मीरूप गुणो कद्देवाय छे. ( अथवा विजयलक्ष्मी सूरि अक्षय केवल ज्ञानना गुणो कहे छे.) ॥ ८ ॥ ९॥ ॥ श्री केवलज्ञानना स्तवननो अर्थ ॥ श्री जिनेश्वर भगवंतने क्षायिकभावे प्रगट थयेलुं ज्ञान तथा 'अढार दोषनो नाश थवाथी उत्पन्न थया जे गुणो ते प्रमाण छे. १ हास्य, रति, अरति, भीति, जुगुप्सा, शोक, काम, मिथ्यात्व, अज्ञान, निद्रा, अविरति, दानान्तराय, लाभान्तराय, वीर्यान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय, राग, द्वेष, ए १८. अथवा अज्ञान, क्रोध, मद, मान, लोभ, माया, रति, अरति, निद्रा, शोक, अलीक, चौर्य, मत्सर, भय, प्राणिवध, प्रेम, क्रीडाप्रसंग, हास्य, ए १८ दोष जाणवा.
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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