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________________ ( २२० ) जे प्राणीओ आगमने भणे छे, भणावे छे, लखे छे, लखावे छे, ते प्राणी ओना विजय लक्ष्मी रूप गुणना मन्दिर समान जन्मना व-खाण करीए ।। ६ ।। || श्रुतज्ञाननी स्तुतिनो अर्थ ॥ सूर्यसमान जिनेश्वर परमात्मा त्रिगडा उपर बेशी अमृतसमान वाणी बोले छे. अनेकान्त मत एन प्रमाण छे. आत्मानो अनुभव करवानुं स्थानक' चार अनुयोगरूपी गुणोनी खाण परमात्मा अरिहन्त प्रभुनुं शासन श्रेष्ठ वहाणसमान छे. सर्व पदार्थो त्रिपदीवडे जणावे छे. बत्रीश दोष? वर्जित परमात्मानी देशना योजन प्रमाण ८४००, चन्द्रप्रभ ७६००, सुविधि० ६०००, शीतल ५८००, श्रे. यांस० ५०००, वासुपूज्य ४२००, विमल ३६००, अनन्त० ३२०० धर्म २८००, शान्ति २४००, कुन्थु २०००, अर १५००; मल्लि १४००, मुनिसुव्रत १२००, नमि १०००, नेमि ८००, पार्श्व ६०० वर्धमान ४००, सर्व संख्या १२६२०० वादी मुनि होय छे. १ चरणकरणानुयोग १ द्रव्यानुयोग २ धर्मकथानुयोग ३ गणितानुयोग 8 २ प्रकृतिथी आ सर्व संसार छे अथवा आत्मा नथी विगेरे 'अलीक' १, वेदमां कथित हिंसा धर्मने माटे थाय विगेरेनी माफक · , उपघातजनक २, डित्यादिनी माफक निरर्थक ३, पूर्वापर
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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