SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २११ ) अर्थावग्रह, ५ श्रवणेन्द्रिय अर्थावग्रह, ६ मानस अर्थावग्रह ) ॥ ८ ॥ अन्वय ( तेनी साथे व्याप्त ) तथा व्यतिरेक ( तेमां नहि रहेनारा ) धर्मनी विचारणा वडे अर्थावग्रहथी जाणेला पदार्थनुं अन्तर्मुहूर्त्तनी स्थितिवालुं पांच इन्द्रियो तथा मनोद्वाराए ज्ञान थाय ते 'ईहा विचा रणानामनुं ज्ञान जाणं - यत्सच्चे तत्सत्त्वमन्वयः । यदभावे तदभावो व्यतिरेकः - जे छते तेनुं सत्य होय ते अन्वय कहेवाय तथा जेना अभावधी तेनो अभाव होय ते व्यतिरेक कद्देवाय, जेम "स्था पुरुषो वा ?" आ प्रमाणे संशय थयापछी हाथ पग मुख विगेरे पुरुषना धर्म होवाथी आ पुरुष छे एम जणाय ते तेना अन्वय धर्म, तथा डाल बाका विगेरे स्थाणुना धर्म तेपां नहि होवाथी आ स्थाणु नथी ते तेना व्यतिरेक धर्म जाणवा, आ दुहानी अंदर मतिज्ञानना छ भेदो दर्शाव्या छे १ स्पर्शनेन्द्रियईहा, २ रसनेन्द्रियईहा, ३ घ्राणेन्द्रियईहा, ४ चक्षुरिन्द्रियईहा, ५ श्रवणेन्द्रियईहा, ६ मानसईहा ) ॥ ९ ॥ वर्णगन्धादिनो निश्चय थवाथी पांच इन्द्रिय तथा मनवडे आ देवता छे, मनुष्य छे, के अमुक वस्तु छे आवो उत्तम निश्चय थाय छे ते अपाय नामनो भेद समजवो. ( आ दुहायां पण मति१ आ धर्मो होवाथी आ पदार्थ छे तथा आ धर्षो नहि होवाथी आ पदार्थ नथी-एवी विचारणा रूप ज्ञान. आ मतिज्ञाननो त्रीजो भेद. २ आ वस्तु आज छे एवा निश्चयवायुं ज्ञान अपाय - ते मतिनो चोथो भेद छे. आनुं स्थितिमान अन्तर्मुहूर्त्तनुं छे. •
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy