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________________ (२०३) श्री सौभाग्यपंचमाना देववन्दनना अर्थ.॥ ॥ मतिज्ञानना चैत्यवन्दननो अर्थ ॥ श्री मौभाग्यपंचमीनो स्विम सर्व दिवसोमां अलंकार तुल्य छे. ते दिवसे पांच ज्ञाननी पूजा करीए के जेया जन्म सफल याय. ॥१॥ सामायिक तथा पोसहमां (देशावकाशिकमां पण) सारा गन्धवाला वासक्षेपादि चूर्ण वड निरवद्य पूनानो विचार जाणवो. तथा मनोहर ज्ञाननुं ध्यान कम्खु । २॥ पूर्व तथा उत्तर दिशामा प्रधान त्रण पीठ रचीने मुखकर्ता परमात्माना पचवर्ण विम्बने स्थापन करीए ॥ ३ ॥ पूजा सामग्रीने लायक पांचपांच वस्तुआ भेगी करी पंचवर्णना कलश भगदःखना उपभोगनो नाश करीए॥४मान ज्ञाननी प्राप्तिने माटे शक्ति अनुसार पूजा करीए, जे मतिज्ञान श्रीजिनशासमना राजा ( तीर्थकर प्रभु ) ए पंचज्ञानमा अग्रेसर कहेखें छ. ॥५॥ मतिज्ञान तथा श्रुतज्ञानविना अवधिज्ञान विगेरे मोटा ज्ञानो थतां नथी, ते कारणथी मतिज्ञान प्रथम कहुं छे, मति अने श्रुतमां पण मनिनुं प्रधानपणुं छे, ॥ ६ ॥ मतिश्रुतना आवरणनो क्षयोपशम तथा प्राप्ति समानकाले थाय छे. स्वामि आदिके करीने मतिश्रुतनो अभेद छे, पण मुख्यता उपयोगकाळमां होय छे. (जे वखते जे ज्ञान नो उपयोग वर्ते ते वरखते तेज मुख्य जाणवू ) ॥७॥ २लक्षण तथा ? स्वामी, काल, कारण, विषय, परोक्ष, २ आगळ दुहामां बतावशे ते लक्षण तथा भेदो.
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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