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________________ ( १९० ) ॥ अथ थुइ ॥ ॥ गोयम बोले ग्रंथ संभाली ।। ए देशी ॥ त्रिगडे बेशी श्री जिनभाण, बोले भाषा अमिय समाण, - मत अनेकांत प्रमाण ॥ . अरिहंत शासन सफरी सुखाण, चउ अनुयोग जिहां गुणखाण, आतम अनुभव ठाण ॥ सकळ पदारथ त्रिपदी जाण, जोजन भूमि पसरे वखाण, दोष बत्रीश परिहाण ॥ haoभाषित ते श्रुत नाण, विजयलक्ष्मी सूरि कहे बहुमान, चित्त धरजो ते सयाण ॥ १ ॥ इति स्तुति ॥ पछी खमासण दइ, उभा रही, श्रुतज्ञानना चौद गुण वर्णववाने अर्थे दोहा कहेवा ते लखे छे. ॥ दोहा ॥ बंदो श्रीश्रुतज्ञानने, भेद चतुर्दश बीश || तेहमां चउदश वरण, श्रुत केवळी श्रुत इश भेद अढार अकारना, एम सवि अक्षर मान ॥ लब्धि संज्ञा व्यंजन विधि, अक्षर श्रुत अवधान ॥ अथ पीठिका ॥ ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ पवयण श्रुत सिद्धांत ते, आगम समय वखाणी ॥ पूजो बहुविध रागथी, चरण कमल चित्त आणी. ३ ॥ १९॥खमा ० ॥ ए दोहो गुण गुण दीठ कहेवो ॥
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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