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________________ ( १८१) ॥ अथ श्री ज्ञानपंचमीदेववंदन प्रारंभ ॥ ॥ तत्र प्रथम विधि ॥ प्रथम बाजोठ उपर ठवणी ने तेनी उपर रुमाल ढांकी ते उपर पांच पुस्तक मूकीने वासक्षेपथी ज्ञाननी पूजा करीए, बली पांच दीचेटनो दीवो करीए, ते जयणापूर्वक पुस्तकनी जमणी पासे स्थापीए अने धूपधाणुं डाबे पासे मुकीए, पुस्तक आगल पांच अथवा एकावन साथीया करी उपर श्रीफल तथा सोपारी मूकीए. यथाशक्ति ज्ञाननी द्रव्यपूजा करीए. पछी देव वांदीए अने सामायिक तथा पोसह मध्ये वासपूजाए पुस्तक पूजीने देव वांदीए, अथवा देहरा मध्ये बाजोठ त्रण उपराउपर मांडी ते उपर पांच जिनमूर्ति स्थापीए. तथा महा उत्सवथी स्नात्र भणावीए. प्रभु आगल जमणी तरफ पुस्तक मांडयुं होय तेनी पण वास प्रमुखे पूजा करीए. तथा उजमणुं मांडयुं होय तो तिहां पण यथाशक्ति जिनबिंब आगळ लघु स्नात्र भणावीने अथवा सत्तर भेदी पूजा भणावीने पछी श्री सौभाग्य पंचमीना देव चांदीए. हवे देव वांदवानो विधि कहे छे. प्रथम प्रतिमाजीनी जोगवाइ न होय तो स्थापनाचार्य समीपे अथवा नवकार पंचिंदियवडे स्थापना स्थापीने इरियावही पडिक्कमी, चार नवकारनो अथवा एक लोगस्सनो काउस्सग करी, प्रगट लोगस्स कही, खमासमण देइ, इच्छाकारेण संदिस्सह भगवन् मतिज्ञान आराधनाथ चैत्यवंदन करूं ? एम कही, योगमुद्राए बेप्ती चैत्यवंदन करीए ते कहे छे.
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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