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________________ ( १७७) पूजानारे, जे जे उपगरण जोइए. त्रुटक - जोइए उपगरण देवपूजा, काज कळश भृंगार ए; आरती मंगळ थाळ दीवों, धुपधाणो सार ए; घनसार केशर अगर सुखड, अंगलुहणा दीस ए; पंच पंच सघळी वस्तु ढोवो, शक्तिश्यं पचवीश ए || १८ || ढाळ - पंचमीता रे, साहमी सरव जमाडीए; रातीजगेरे, गीत रसाळ गवाडीए; इण करणीरे, करता ज्ञान आराधीए; ज्ञान दरशनरे, उत्तम कारण साधीए. त्रुटक - साधीए मारग एणी करणी, ज्ञान लहीए निरमळो सुरलोक ने नरलोकमां है, ज्ञान निरमळ आगळो; अनुक्रमे केवळ ज्ञान पामी, शाश्वता सुख ते लहे; जे करे पंचमी तप अखंडित, वीर जिनवर इम कहे ॥ १९ ॥ कळश. इम पंचमी तप फळ प्ररूपक, वर्द्धमान जिणेसरो, में श्री अरिहंत भगवंत, अतुल वळ अलवेसरो; जयवंत श्री जिनचंद सूरि, सकळचंद नर्मसीओ, वांचनाचारज समयसुंदर, भगति भाव प्रशंसियो ||२०|| इति. १ पंचमी तप करनारा.
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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