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________________ ( ८ ) सर्वत्र दुष्ट बुद्धिवाळा होय छे, दुःखी माणसोने सर्वत्र दुःख होय छे, अने सुखी माणसोने सर्वत्र सुख होय छे. " आ श्लोकमां कहेली बाबत सत्य छे के नहीं ? तेनी परीक्षा करवानी इच्छा थी ते राजाए बीजे दिवसे कृत्रिम कोप करीने एक घणा गुणोवडे प्रसिद्ध एवा महा सत्पुरुषने पोताना सेवको द्वारा बोलाव्यो, अने तेने कछु के-" हाथीनी जेम मदांध थयेला तारा पुत्रे मारी आपली आज्ञारूपी अर्गला (सांकळ ) ने मारा चर पुरुषना समक्ष वळथी तोडी नांखी छे. " आ प्रमाणे अत्यंत कृत्रिम कोप करीने दोषनो आरोप करी राजाए तेने तेना पुत्रसहित चोरनी जेम कारागृहमां नांख्यो. अने पोताना अति विश्वासु चर पुरुषोने गुप्त रीते तेमनी बातो सांभळवा माटे आज्ञा करी. पछी राजाए कपटथी पोताना शरीरमां अत्यंत व्याधि थयानुं प्रगट कर्यु. तेथी गुप्त चर पुरुषो पण परस्पर आ प्रमाण बोलवा लाग्या के - " आजे राजानुं शरीर आयुष्यन अंत समय जेवुं थयुं जणाय छे. आवा आकस्मिक महाव्याधिथी जीवितनी आशा क्यांथीज होय ? " आ प्रमाणे नजीकना चर पुरुषोथी थती वात सांभळीने स्वभावथीज परहितकांक्षी एवा ते पिता अने पुत्र महा शोक पाम्या, अने निझरणांनी जम चक्षुमांधी अने मूकवा लाग्या. पछी ते बंने परस्पर हृदयमा रहेली वातो करवा लाग्या के - " हा ! हा ! राजाना शरीरमां आ अकस्माव शुं थयुं ? गमे ते थयुं होय पण परिणामे आ राजानुं कांइ पण अद्दित न थाओ, जो के आ राजाए आपणने सहसात्कारे फोगट
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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