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________________ ( १६२ ) व्यवहारी जिनदेव छे, घरणी सुंदरी नाम अंगज पांच सोहामणा, पुत्री चतुरा चार ॥ पंडित पासे शीखवा, ताते मूक्या कुमार बाळ स्वभावे रमत करतां दहाडा जाय ॥ पंडित मारे त्यारे, मा आगल कहे आय सुंदरी शंखिणी शीखवे, भणवानुं नहीं काम || पंड्यो आवे तेडवा, तो तस हणजो ताम पाटी खडिया लेखण, बाळी कीधां राख ॥ शठने विद्या नवि रुचे, जेम करहाने द्राख पाडापरे महोटा थया, कन्या न दीये कोय | शेठ कहे सुण सुंदरी, ए तुज करणी जोय की भाखे भामिनी, बेटा बापना होय ॥ पुत्री होये मातनी, जाणे छे सौ कोय रे रे पापिणी सापिणी, सामा बोल म बोल || साळी कहे ताहरो, पापी बाप निटोल शेठे मारी सुंदरी, काल करी ततखेव || ए तुज बेटी उपनी, ज्ञान विराधन हेव मूर्छागत गुणमंजरी, जातिसमरण पामी ॥ ज्ञान दीवाकर साचो, गुरुने कहे शिर नामि शेठ कहे सुणो स्वामी, केम जाए ए रोग | गुरु कहे ज्ञान आराधो, साधो बंछित योग ॥ १ ॥ 113 11 ॥ ३ ॥ 11 8 11 “॥५॥ ॥ ६॥ 11911 ॥ ८ ॥ 119 11 ॥ १० ॥ ॥ ११ ॥
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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