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________________ (१३८ ) चौसठ सुरपति अवधिए, जिन जनम्या कही जइ सुरगिरिजीरे.भा.३ रजत कनक ने रत्नना, कळशा खीरोदकथी भरीजीरे भा० न्हवण उच्छव जिननो करे, समकित गुण निर्मळता करीजीरे.भा०४ मिथ्यावर अवधि ले, जे पूजे जिन भगतेः खरीज़ीरे; भा० जिन उत्तम पद पद्मनी, पूजा चिद्रूपविजये. करीजीरे. भा०५ काव्य तथा मंत्र पूर्ववत् कहेवा. गीत ( दुह्म.) द्रव्य क्षेत्र काळ भावथी, उत्कृष्ट अवधिज्ञान; मनुज गतिमां पामीए, वधते शुचि प्रणिधान. लोकावधि अवधिलगे, पडिवाइ पण होय; तदुपरि अवधि जे होये, अपडिवाइ ते जोय. ढाळ. (मोहनवीरा मोकलोने मोसाळुरे--ए देशी) निर्मळ करी मन वच काया, छडि सवी ममता माया; परमातम ध्यान सुहाया, ओहिजिन पूजीए मनरंगे, जीमा रमीए समकित संगे. क्षेत्र काळथी ओहिनाणी, चउहा लहे वुढी ने हाणी इम कहे. जिन केवलनाणी. ओ०२ द्रव्यथी दुग बुढि वखाणी, भावथी खट् वृद्धि जाणी; समुदाइ चउहा. कहाणी. ओ०३ ___ ओ०१
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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