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________________ ( ११८ ) 44 ते महाकाळनो संबंध एवो छे के - " अयोधन" नामना राजाए पोतानी पुत्रीनो स्वयंवर आरंभ्यो. ते वखते ते कन्यानी माताए कन्याने गुप्त रीते कां के - " मारा भाइनो पुत्र जे ' मधुपिंग 'छे, तेने तुं वरजे. केमके ते बहु रूपवान तथा गुणी छे. " आवात सर्व राजाओमा मुख्य एवा 99 सगर राजा गुप्तपणे सांभळनारी एक दूतीना मुखथी जाणीने पोताना पुरोहितने ते कन्याने परणवानो उपाय पूछयो. त्यारे कपट करवामां चतुर अने शीघ्रकवि एवा ते पुरोहिते तत्काळ नवी राजलक्षण संहिता बनावीने सभामां एवी रीते ते ग्रंथनुं व्याख्यान कर्यु के जेथी राजलक्षणोवडे सगर राजा उत्कृष्ट गणाय, अने मधुपिंग हीन गणाय ते सांभळीने सर्व राजाओवडे हांसी करातो मधुपिंग लज्जा पामीने सभामांथी जतो रह्यो, अने ते कन्याने सगर राजा परण्यो. पछी मधुपिंग क्रोधथी तप करीने महाकाळ नामनो असुर थयो. आ असुर अने पर्वतने त्रीजो " पिष्पलाद पण मळो हतो. ?? पिष्पलादनुं वृत्तांत एवं छे के - " सुलसा " अने " सुभद्रा " नामे वे परिवाजिकाओ जगप्रसिद्ध हती. तेमां मोटी सुलसा घणीज विद्वान हती, तेथी तेणीए पडह वगडाच्यो हतो के " जे कोइ मने वादमां जीते तेनी हुं शिष्या थाउं, अने जो ते मने न जीते तो ते मारो शिष्य थाय." आ प्रमाणे प्रतिज्ञा करीने फरतां कोइ वखत तेणीने " याज्ञवल्क्य " नामना परिव्राजक साथै वाद थयो. तेमां याज्ञवल्क्य - नो पराजय करी तेणीए तेने पोतानो शिष्य कर्यो. त्यार पछी अनुक्रमे घणा परिचय लीघे तेमनी अकार्यमां प्रवृत्ति थवाथी सुलसा
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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