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________________ ( ११५ ) जशे, अने बीजा बे नरके जशे . " ते वखते उपाध्याय जागता हता, तेणे आवृत्तांत सांभळीने खेद पामी विचार्य के - " मने धिकार छे के हुं भणावनार छतां मारा बे शिष्यो नरके जशे . " पछी प्रात:काळे "आ त्रणमांथी स्वर्गे कोण जशे ? अने नरके कोण जशे . ?" तेनो निर्णय करवा माटे तेनी परीक्षा करवा दरेकने एक एक लोटनो कुकडो आपीने कांके - " जे ठेकाणे कोइ पण न जुए तेवे गुप्त स्थाने आने मारीने लावो. " ते सांभळीने वसु अने पर्वत ए बने जणे जूद जूदी दिशामां निर्जन प्रदेशमां जइने ते कुकडाने हृण्यो अने नारद तो अत्यंत दूर शून्य स्थानमां गया छतां पण बुद्धिमान होवाथी विचार करवा लाग्यो के - " आ निर्जन स्थान छे, तो पण अहीं हूं देखें, देवो देखे छे, सिद्धो देखे छे तथा ज्ञानी पण देखे छे. जे स्थाने कोइ पण न देखे एवं स्थान तो आखा विश्वने विषे कोइ पण नथी, तेथी खरेखर आ कुकडो अवध्य छे ( वध करवा योग्य नथी). एवो गुरुनी वाणीनो अभिप्राय जणाय छे. स्वभावथीज परम दयाळु एवा. गुरुए जे अमने वध करवानो आदेश आप्पो छे, ते अमारी परीक्षा माटेज आयो जणाय छे. " पछी अनुक्रमे ते त्रणे शिष्योए आवी पोत पोतानुं वृत्तांत गुरुने निवेदन कर्यु. ते सांभळीने उपाध्याये "नार ज स्वर्गगामी छे. " एम निश्चय करीने तेने गौरवताथी आलिंगन कर्य, अने बीजा बन्नेनी निंदा करी. पछी तेज कारणथी उत्पन्न थयेळा वैराग्यथी उपाध्याये प्रव्रज्या ग्रहण करी. एटले तेना स्थान पर तेनो पुत्र पर्वतक बेठो. अनुक्रमे अभिचंद्र राजा पण दीक्षा कीधी, तेथी तेनी गादीए बसु राजा थयो. ते वसु राजा पोताना सत्यवादी
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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