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________________ (११०) हालना समयमां इंग्रेजोना राज्यमां पण सर्व कार्योमा त्रण. वार आज्ञानी अपेक्षा राखवानी व्यवस्था छे.'केमके तेवी व्यवस्थाने लीधे सारी रीते विचार करवा रूप गुण प्राप्त थाय छे. अथवा तो रामचंद्रनी जेम एकांत पिनानी आज्ञा प्रमाणे वर्तवामांज तत्पर, अत्यंत नम्रतावान् अने महासाहसिकना निधिसमान पुत्रनो पितानी आज्ञा पाळवामां शो दोष छ ? अत्यंत विस्मयथी ( हर्षथी) सर्व अंगमा उल्लास पामता रोमोद्गम ( रोमांच ) वडे गुरुनी आज्ञानुं अनुष्ठान महान् पुरुषोने पण वखाणवा लायकज छे; परंतु तेमां आज्ञा आपनार पितानोज दोष छे के जेथी अत्यंत कृाना पात्ररूप पुत्र उपर पण सारी रीते जोया वांच्या विना ज कागळ लखी मोकल्यो. अथवा नवा नवा अनेक कार्योमा व्यग्र रहेला पितानो पण शो दोष ? पुरुष रत्ननो नाश करनारी, तेवा प्रकारना कूट प्रपंचने रचनारी अने दुष्ट मतिवाळी अपरमातानो ज दोष छे. अथवा स्त्री जातिनी स्वभावथी ज दुष्टताने लीये, वगर विचारे ज कार्य करवापणाने लीधे अने पापमां ज तत्पर होवाने लीधे तथा अपरमाता निरंतर द्वेषवाळी ज होय छे अने तेणीनुं हृदय दुष्ट ज होय छे तेने लीधे तेमज पोताना पुत्रने राज्यप्राप्ति थाय तो ठीक तेवा विचाररूप लोभसागरनुं दुर्निवारपणुं होवाने लीधे तेणीए आ अकार्य कर्यु, तेमां शुं आश्चर्य ? कांइज नहीं. १ दरेक धारानु बील त्रणवार वंचाया पछी पसार थाय छे. कोइ पण वस्तुनुं वेचाण पण छेल्लावार प्रणवार बोल्या पछी करवामां आवे छे.
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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