SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ९९ ) श्लाघा करतां कडं के-" अझे! आपनी जेवा महर्षि पृथ्वीपर कोण छ ? अहयो बहवः सन्ति भकभक्षणदक्षिणाः। एकः स एव शेषः स्याद्धरित्रीधरणक्षमः॥१॥ अर्थ-देडकांओनुं भक्षण करवामां चतुर एवा सो तो दुनीआमां धणा छे, परंतु पृथ्वीने धारण करवामां तो एक शेषनाग ज समर्थ छे. १. खेरैवोदयः श्लाध्यः कोऽन्येषामुदये ग्रहः । न तमांसि न तेजांति यस्मिन्नभ्युदिते सति ॥२॥ अर्थ-सूर्यनोज उदय लाघा करवा योग्य छे, बीना (तेजस्वी) ना उदयमां शो आग्रह ! कारण के सूर्यनो उदय थवाथी अंधकार तेमज बीजां तेजो बिलकुल रहेतां नथी. २. वळी आपनी कवित्वकळा पण असाधारण छे. केमके साकरनी जेवा मीठाशवाळां काव्यनां पदो उपरा उपरी कया कविना मुखथी नोकळतां नथी ? सर्वनां मुखमाथी नीकळे छे. तथा कोनी वाणीनो वैभव उत्तम रसने पुष्ट करतो नथी ? सर्वनो करे छे. परंतु जे कवि सुंदर पदो अने उत्तम रस ए बनेने अमृतना निझरणानी जेवा रसवडे तरंगित करे छे, तेवा कवि तो क्वचित् कोइकज होय छे. वळी कविनी वाणीमां अत्यंत मधुरता लागवी ए काइ सरखा अक्षरोनी
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy