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________________ शब्दवडे ( अर्थात् कीर्तिने माटे ) चेतनारहित होवाथी तथा भ्रमनो हेतु होवाथी मिथ्यात्वशास्त्रना समूहरूप वनमा ( अरण्यमा ) केम भ्रमण करो छो ? मिथ्यावादनो त्याग करी सत्य एवा तीर्थकरादिष्ट-तीर्थकरभाषित सिद्धांतने विष आदर करो... त्रीजो अर्थ-" अण्" ए धातुनो अर्थ-" शब्द करवो " थाय छे, तेथी 'अणु' एटले शब्द ते शब्दरूप जेनां पुष्पो होय ते 'अणुपुष्पा' एटले कीर्ति कहेवाय छे. ते कीर्तिनां पुष्पोने एटले सद्बोधनां वचनोने न तोडो, तथा मननी आरा एटले विंधवाना गुणने लीधे अध्यात्म संबंधी उपदेशो तेनुं मोटन न करो, एटले खराब व्याख्या करवाथी तेनो नाश न करो. तथा निरंजननी एटले रागादिक लेपरहित. एवा वीतराग देवनी सदगुरुना उपदेशरूप सुगंधी अने शीतळ एवा पुष्पोवडे पूजा करो. तथा वनना एटले संसारना इन एटले स्वामी जे परम सुखी होवाथी तीर्थकर, तेना वनमा एटले शब्दरूप सिद्धांतमां केम हीडो छो ? शा माटे भ्रांति पामो छो ? केमके ते सिद्धांत सत्य छे, तेथी तेमांज प्रीति राखो. __चोथो अर्थ-प्राकृत भाषामां अनेक अर्थ थवाथी एवो पणअर्थ थाय छे के-जेने फळो आव्यां नथी एवां पुष्पोने तोडो नहीं. एटले के योगरूपी कल्पक्षतुं मूळ यम नियम छे, ध्यानरूप तेनुं प्रकांड छ, समतारूप स्कंध छे, कवित्व, वक्तृत्व, यश, प्रताप, मारण, स्तंभन, उच्चाटन अने वशीकरणादिक सामर्थ्यरूपी पुष्पो छे, तथा केवळज्ञानरूपी फळ छे. हजु मात्र योगरूप कल्पवृक्षनां पुष्पोज आवेला छे, ते पुष्पो आगळपर केवळज्ञानरूप फळने उत्पन्न करवानां छे.
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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