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________________ (२०) देवलोके जघन्य दस सागरोपमर्नु । उत्कृष्टो चउद सागरोपमनुं । सातमे शुक्र देवलोके जघन्य चउद सागरोपमर्नु । उत्कृष्टो सत्तर सागरोपम नुं । आठ में देवलोके जघन्य सत्तर सागरोपम नुं । उत्कृष्टो अठार सागरोपम नुं । नवमे अनंत देवलोके जघन्य अठार सागरोपम नुं । उत्कृष्टो ओगणीस सा. गरोपम नु । दसमे प्रणत देवलोके जघन्य ओगणीस सागरोपम नुं । उत्कृष्टो बीस सागरोपमर्नु । ग्यारमे अरण्य देवलोके जघन्य बीस सागरोपमनुं उत्कृष्टो इकबसि सागरोपमनु । बारमे अच्युत देव लोके जघन्य इकवीस सागरोपमर्नु । उत्कृष्टो बावीस सागरोपमनुं ॥प्रथम नवग्रेवेके जघन्य बावीस सागरोपमनुं । उत्कृष्टो तेवीससागरोपम नुं । बीजे ग्रेवेके जघन्य तेवीस सागरोपमनुं । उत्कृष्टो चोवी. स सागरोपमन । तीजे नवग्रेवेके जघन्य चोवीस सागरोपमनुं । उत्कृष्टो पचीस सागरोपमनुं । चोथे वववेके जघन्य पचास सागरोपम नुं । उत्कृष्टो
SR No.023523
Book TitleTattvabodhak Kalyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemshreeji
PublisherHemshreeji
Publication Year1916
Total Pages100
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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