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________________ (१३) श्रुत ज्ञान, अवधी ज्ञान, मन पर्यव ज्ञान, केवल• ज्ञान । तीन अज्ञान । मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान, विभंग अज्ञान ! अने चार दर्शन । चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधी दर्शन; केवल दर्शन ए बार उपयोगछ। नारकी, दसभुवनपती व्यंतर, योतिषी वैमानिक, तिर्यंच पंचेंद्री, ए पनर दंडके। नव उपयोग । तीनज्ञान, तीन अज्ञान, तीन दर्शन ए नव उपयोग होय। पांच थावर ने तीन उपयोग। मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान, अचक्षु दर्शन ए तीन होय । बेइंद्री, तेइंद्री ने तीन तथा पांच उपयोग होय । बेज्ञान, बे अज्ञान, एक अचक्षु दर्शन । चौरिंद्रियने छ उपयोग । बे ज्ञान, वे अज्ञान, बे दर्शन मनुष्य ने बार उपयोग पामे ॥ ॥ सोलमुं सत्तर, उपजवा चक्वानी संख्या द्वार ॥ - नारकी, दस भुवनपती, व्यंतर, योतिषी, वैमा. 'निक, तीर्यच पंद्री, त्रय विकलेंद्री ए अठार
SR No.023523
Book TitleTattvabodhak Kalyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemshreeji
PublisherHemshreeji
Publication Year1916
Total Pages100
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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