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________________ ( ८ ) ॥ आठमुं कषायद्वार कहे छे ॥ कषायना चार नाम क्रोध १, मान २, माया ३, लोभ ४, एचार कषाय चोवीस दंडके पामें ॥ ८ ॥ ॥ नवमं इंद्रीय द्वार कहे छे ॥ इंद्रीना पांच नाम | फरसेंद्री १, रसेंद्री २, बा गेंद्री ३, चक्षुद्री ४, श्रोतेंद्र ५ । नारकी दस भवन पती, व्यंतर, योतीषी, वैमानिक, तीयंचपंचेंद्री, मनुष्य पंचेंद्री, एसोल डंडकें पांच इंद्री । पांच थावरने | एक फरसइंद्री, बेइंद्रीयन, फरसइंद्री रसेंद्री, तेद्रीने, फरसेंद्री, रसेंद्री, बाणेंद्री, ए तीन होय । चोउरिंद्री ने । फरसेंद्री, रसेंद्री, घ्राणेंद्री, चक्षुइंद्री, ए ४ इंद्री होय ॥ ९ ॥ ॥ दसमुं समुद्यत द्वार कहे छे || समुद्घात सातनानाम | वैदनीय समुद्घातः, कंपाय समुद्रात २ मरणांतिक समुद्घात ३,
SR No.023523
Book TitleTattvabodhak Kalyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemshreeji
PublisherHemshreeji
Publication Year1916
Total Pages100
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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