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________________ उपदेशमालाविशेषवृत्तिः ॥ ४४ ॥ જૂર કર્યાગાં हह तिहुयणनाहह नाणु जाउ झामियकलिहिं ॥ ९१ ॥ मिलियबत्तीसतियसेस चालियाऽऽसणा, महिम नाणस्स तस्साऽऽवति क्खणा । अह समवसरणु किरणावली मालि (राइ) यं, रयण-तवणिज्ज - रुप्पेहिं उप्पाइयं ॥ ९२ ॥ तत्थ तित्थेसु सोहंत सीहासणो, खणु समासीण होऊण चउराणणो । पत्तु तत्तोवि पावाए पावणगुणो, तत्थ तित्थं समत्थेइ चउहा जिणो ॥ ९३ ॥ ठाविया ताव एक्का - सुभडगुणा, गणहरा गोयमाई तहा नवगणा । तियसनाहेण तत्थाणिया चंदणा, दिक्खिया मयहरी ठाविया सामिणा ।। ९४ ॥ पुण वि विहरइ महिं नाहु मंडंतउ, भविय कमलाई भाणुव्व भासतउ । खाइयं दंसणं सेणिउ पाविउ, तित्थनामं महत्यं समत्था - विउ ।। ९५ ।। सिद्धत्थह नंदणु भवनिकंदणु केसरिलंछणलंछियउ । चउदह जइ सहसह सामिउ, सुजसह देउ देउ मह वंछियउ ।। ९६ ।। पाडिफद्धिं पसिद्धिं च सद्धिं तए, देव कुव्वंतु गोसालु गंजिउ जए । मज्झिमं पत्तु पावापुरि अप्पणो, जाणिऊणं च for free ॥ ९७ ॥ चरमु निस्समु समोसरणु सुविराइयं, सुंकसालाए पावाए आपूरियं । तीसवासाईं तुममासि गिहवासिरो, बारसई (द्धं च) छउमत्थवत्थाधरो ॥ 8८ ॥ तीसऊणाई ताई तए धारियं, तित्थु सुपसत्थु सव्वत्थ वित्थारियं । साम सव्वाउ बाहत्तरी तेनियं, सत्तहृत्थष्पमाणेण निव्वाहियं ॥ ९९ ॥ जक्खु पश्चक्खु कयरक्खु तुह सासणे, आसि मायंगु नामेण दूसणे । सम्मद्दिट्ठीण साहेज्जकज्जे रया, देवया तुज्झ तित्थंमि सिद्धाइया ।। १०० ।। सिरितिसलानंदणु कणयच्छवितणु पज्जंकासणसंठियउ । कत्तियमावस्सहि साइहिं गोसहिं एक्को च्चिय निव्वाणि गउ || १०१ ॥ इति चंदनबालापारणसन्धिः समाप्तः ।। साम्प्रतं तपःकर्मेव क्षमाऽपि भगवच्चरितावलोकनेन कर्त्तव्येत्याह जता तिलोयनाहो, विसहर बहुयाई असरिसजणस्स । इय जीयंत कराई एस खमा सव्वसाहूणं ॥ ४ ॥ यदि तावत् त्रिलोकनाथो भगवान् महावीरो युगादिजिनस्य निरुपसगँ विहृतत्वात् रणसीमहाराजस्यापि श्रीमहावीरस्यैव सुप्रतीतत्वात् । बहूनि नानाप्रकाराणि कदर्थनानीति गम्यते । नीचस्यापि जनस्य सम्बन्धिनि नीचकृतकदर्थनानामुत्तमानामतीव दुर्विष चंदनबाला पारणा सन्धिः । पराजय ॥ ४४ ॥
SR No.023515
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages574
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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