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________________ S cccccorporae णीकओ चियापासे । ता रन्ना विन्नत्तो विप्पकुमारो सविणएणं ॥ ३३१ ॥ भयवं तुह वयणमिमो न कयावि हुलंघए तओ एयं । उपदेशमाला कारणसिंहकथा तह कहवि हु भणसु जहा विरमइ एयाओ पावाओ ।। ३३२ ॥ विप्पेण तेण भणिओ स भद्द ! किमिमं तए समारद्धं नियविशेषवृत्तिः IN जणोचियमइनिंदियं च सुकुलप्पसूयाण ॥ ३३३ ॥ अन्नं च तया तुमए चक्कउराउ ममाणयंतेण । भणियं कयकिच्चोहं तुममाणेऊण मुंचिस्सं ॥ ३३४ ॥ कमलवइआलदाणं पावं पावस्स तूलिया सवहो । मलिणवसणस्स कज्जलजलेण ता केरिसी सुद्धी ॥ ३३५ ।। ॥२२॥ कमलवई ताव मया तम्मिलणमणोरहेण मा मरसु । नियनियकम्मेहिं कहिं पि जाइ को जाणई जीवो ॥३३६।। चुलसीइ जोणिलक्खोवलक्खिओ सव्वओ वि संसारो। ता तत्थ कत्थ कत्थय न जंति जीवा सकम्मेहिं ॥ ३३७॥ किश्च-" सगुणं व निग्गुणं वा, कज्जकलावं समायरंतेण । परिणामो सव्वत्थ वि चिंतेयव्वो चतुरमइणा ॥ ३३८॥" यत उक्तं-" सगुणमपगुणं वा कुर्वता कार्यजातं, परिणतिरवधार्या यत्नतः पण्डितेन । अतिरभसकृतानां कर्मणामाविपत्तेर्भवति हृदयदाही शल्यतुल्यो विपाकः ॥ ३३९॥" अपि च-" कुरु मदाख्यानं पालय प्राणांस्तावत् ॥ ३४० ॥” यतः-मा स्म सन्धि विजानन्तु, मा स्म जानन्तु विग्रहम् । आख्यातं यदि शृण्वन्ति, नृपास्तेनैव पण्डिताः ॥ ३४१॥ तथा-अहुणा पाणे पालिंतयस्स मा नाम संगमो होइ । पाणपरिचाएऽवस्समेव मेलावओ दुलहो ॥ ३४२ ।। कुमारः सप्रत्याशं सप्रमोदं च-दियवर ! दइयासक्खं निरक्खिया अक्खिया व केणावि । कत्थइ नियनाणबलेण जाणिया IN अहव जीवंती ॥ ३४३ ।। हरिसभरवसेण य साऽवटुंभं जमेवमुल्लविरो। चिय जाणणुज्जए मइ सिग्धं विग्धाय सन्जोसि ॥ ३४४ ॥ ॥ २२॥ अइ वरकुमार ! नियसार जोइसुल्लासओ मए नाया। विहिणो पासे सा अत्थि सुत्थिया ता तुह गिराए । ३४५ ॥ विहिपासे अप्पाणं उल्ले-मिस्लेत्तु तं इहाणेमि । सच्चं सच्चिय जइ होइ दिविया ता कयत्थोहं ।। ३४६ ।। evereozaaeezopezoekoeero ZARCccccc
SR No.023515
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages574
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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