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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
॥ १६ ॥
वस्छ
व्यंव
संगण निधी
किमंभो कुंभे कयअंभपव्भारे ॥ २२५ ॥ ता तीए जाउंड पाडेभि सिरंमि देमि पडिवोयं । नियमाउंच्छियमापुच्छिऊण पश्चाइया पवरं ॥ २२६ ॥ अइतिक्खदुक्खदुक्खियमणाए सव्वं नरिंददुहियाए। तो गंधमूसिया नामियाए संभालिया तीए ।। २२७ ।। मह परिहं संसार' सुनिसारसुतं कुमारगेहाओ । भयवइ माए मंताइयाणमन्नं फलं किं ते ।। २२८ ।। अंगीकाऊणमिणं नीहरिया गंधमूसिया तत्तो । अचिरेणं चिय पत्ता पावा कुमरस्स नयरंमि ।। २२९ ।। कणगवई तीए भाइणिज्जिया तेण एइ जाइ सया । कणगवईए पासे कुमारअंतेउरस्संतो ॥ २३० ॥ नवनवकुहगकहाहिं कमलवई साऽलवेइ सविसेसं । वीसासपासपडिया सुद्देण वंचिज्जए जेण ॥२३१॥ कइयावि कवडनाडयपाडवपायडमईए पावाए। रयणीए निसीहे, गंधमूसियाए सुकुडिलाए ||२३२|| चेडगवावाराओ कमलवई वासमंदिरस्संतो । कुमरम्स दंसिओ पयडमेव परपुरिससंचारो ॥ २३३ ॥ तहवि न सो पत्तिज्जइ सुपरिक्खिय चोक्खसीललीलाइ । कमलवईए कलंको सीलंमि न होइ कइयावि || २३४ ॥ सक्खं पेक्खइ चक्खू परपुरिसं सुदिढपश्चयं चित्तं । को ताण विसंवायं विणिवारइ निच्छियच्छाण ।। २३५ || अह पुण पुण पेच्छंतो पुच्छर पाणप्पिए किमेयंति । हयनयणाई जं मह कति परपुरिससंचारं ||२३६ || पिय ! मंदभाइणीए पुच्छाए मज्झ अलमलमिमीए । कम्माई मज्झ पुच्छसु जाणि वियारिंति तुह दिट्ठि || २३७|| देदेहि देवि ! दिव्वे वसुंधरे विवरमायरेण महं । पविसित्तु झत्ति दुव्वयणमेरिसं जेण न सुणामि || २३८ || सुणइ कुमारो वस्सं कस्सइ जक्खस्स अहव रक्खस्स । इय ववसाओ कि हुंति पूयरा कत्थइ दुद्धे ।। २३९ ।। " जइवि तरुणि तारुन्नतारुन्नइ खरs, नवतडितरल झलक्किहिं नयणिहिं मणुहरइ । तहवि निरंतर संगमि परियाणियमणओ, कयभरवसउ न किंतु होइ निरुदुम्मणओ ॥ २४० ॥ " तो गंधमूसिया ताण पाणतंबोल भोयणाईसु । विदेसणाय मंतं मूलि जोगं पउजेइ ॥ २४९ ॥ तम्मयमणोवि तहोयणं च लायन्नजीवियव्वो वि । तव्वसओ सीहो तक्कहाए तो जलइ जलणोव्व ।। २४१ ।। लोयाबवाय संताविएण तो तेण ववसिय एयं । नीसारिज्जउ एसा पेसिज्जड पेइयहरंमि ॥ २४२ ॥ तो पञ्चइयनराणं एते कंपि देइ आदेसं । अणवस
१ सुनी BD२ रक्खइ B ३ क । ४ न ५ मणु D I
रणसिंहकथा
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