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________________ उपदेशमालाविशेषवृत्तिः ॥ १४ ॥ तस्स सब्बो सकोउगमणस्स । पहसइ सहत्थतालं, सह तीए लज्जमाणीए ॥। १९२ ।। पभणइ सहासमेसो, परनारिसहोयरस्स नाहस्स । परपरिणीया पासंमि, एसि का तंसि जाहि बहिं ॥ १९३ ।। स खणेण भीमराओ, सासूससुराण पासमल्लिया । आह सविम्हयमव्वो, तुम्ह सुया किं सुओ जाओ ॥ १९४ ॥ निवमुहमिक्खइ अक्खड़, खुहियमणा तक्खणा कमलणी ता । तो जामाओ किमेवंपि य पलवइ वाउलो जाओ ।। १९५ ।। भणइ नरिंदो किं आलजालमाऽऽलवसि वच्छ ! गहिलोव्व । नेगभविचिय दिट्ठो, सुओव नरनारिपरिवत्तो ॥ १९६ ॥ तो वृत्तंतो प्रत्तो, ताणऽग्गे तेण खलु विलक्खेण । विलबंति ताणि धुत्तेण, धुत्तिया ही वयं केण ।। १९७ ॥ घरपुरपवासु मढसरिसभासु बावीस सा गविट्ठावि । जाब न दिट्ठा ता ताणि, मूढचित्ताणि रोयंति ॥। १९८ ।। अह करुणाए ताण, तद्दरिसावणकए व्व तिव्बकरो । उदयाचलचूलाचूंबिचारुबिंबो लहुं जाओ ॥ १९९ ॥ “ आसीस्त्वं निशिराज ! रक्तहृदयेतीर्ष्यालुना वज्रिणा, प्रातः शङ्कितयेव दिव्यपदवीं गत्वाऽऽत्मनः शुद्धये । औत्तापितवार्द्धितापकतलादाकृष्य मुक्तो बहिः, प्राच्यासौ दिवि तप्तमाषक इव प्रद्योतनो द्योतते ॥ २०० ॥ " कहियं केवि गोसे कमलवई काणणे मए दिट्ठा। नूणं नवोढा नेवत्थलंछियाओ व महीनाहं ॥ २०९ ॥ अह सो भीमकुमारो वियडुब्भडभिउडीभंगुरणिडालो । सह सुहडसहस्सेहिं कयसन्नाहो महाबाहो ॥ २०२ ॥ जयकुंजरमारूढो रणत्तुराडंबरेण रणसीहं । संहरिडं संपत्तो स हरिणजूहोव्व जूहवई || २०३ || भडचडगरेण महया आयाओ निवइ कमलसेणो वि । रणसीण वि सेणा सहसा सज्जीकया तत्तो ॥ २०४ ॥ नियनियऩरवइजयलच्छिमिच्छमाणाण दोन्ह वि बलाणं । अहमहमिगाए तत्तो, स पयट्टो समरसंघट्टो || २०५ ।। तथाहि 'अभिघडं घडघणमरट्टि, पक्खरियतुकपक्खरियघट्टि । पिल्लिज्जहिं रहवर रहवरेहिं गयणंगणुकाय हिंसियसरेहिं ॥ २०६ ॥ १ अभिवह-अप्पि B. C. D. I रणसिंहकथा ॥ १४ ॥
SR No.023515
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages574
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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