SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेशमाला विशेषवृत्तिः 20eDeceDescroecemein पुत्तं । संचारिऊण सहसा स अप्पिओ अग्गमहिसीए ॥९॥ राहसिय दासिपासेण तीए उंडे तणाल जुरंडे । दूरे खिवाविओ | | सो जहा छुहाए सयं मरइ ॥ १० ॥ तह रहकजे विजया पजोइया विहियदाणसम्माणा। 'विस्सासकारिणी' सूइ-कारिणी | रणसिंहकथा | होइ हि महिला' ॥ ११ ॥ धणकणलोभेणऽहवा सा कावि कुलाणुरुवमायरउ । अम्गमहिसी वि एवं कारइ तणयस्स किं भणिमो ॥१२॥ "कज अकज न जाणइ महिला मूढमइ एक्पयंतरि होइ। जंतंपि हु नहु मुणइ ता वरि किज्जइ जंत जुवइ नियघरणिघरि । अरिसारअसरिसवसणज आणइ नेव नवरि ॥ १३ ॥” इओ यNI सुदिट्ठवओ सव्वसहो अइधन्नो सुपयसप्पिवासोय । विजयपुरस्सासन्ने आसि सुसाहोव्व वरगामो ॥१४॥ कोढुंबिएण तग्गाम वासिणा सुंदरेण सो बालो । तणगहणकए तत्थागएण नाओ विरसमाणो ॥१५॥ पविसिय ससंभमोपल्लविल्लबल्लीलयाण गुम्माओ। मणिमयपडिम पि व पाणिसंपुडे कुणइ हरिसेण ॥ १६ ॥ “जं नर हियइहिया वि न सकहिं, जहिं न वि आसकिसोरपुरकहिं । तं अघडंतु वि कज्जु घडावइ, अवरु घडंतु वि विहि विहडावइ ॥१७॥" पाविय अपिहाणनिहाणउव्व सो आगओ सगेहंमि । 101 'मुत्तं मणोरहं पिव, पाणपियाए समप्पेइ ॥१८॥ वणदेवयाए एसो, अम्हमपुत्ताण पुत्तओ दिन्नो । सुरतरुनवांकुरो विव, पालेNI यवो पयत्तेण ॥ १९ ॥ समए समागयंमि, कय रणसिंहाऽभिहाण उच्छाहो । करितुरयरहारोहाइ रायकीलाए कीलेइ ॥ २० ॥ कइयावि विजयसेणस्स, राइणो रायलोगमज्झाओ। केणावि कयं कन्ने, तं साहसमग्गमहिसीए ॥२१॥ "चंदकला खुरमुंडी, चोरिय रमियाई छन्नपावाई। सुट्ठ वि गोविझताइ, पायडीहुंति तइयदिणे ॥ २२॥" नयनिउणं नाऊणं, सव्वं चिंतेइ तीए दुचरियं । 'अहह अहो इत्थीणं, न खलाण व विजइ अकज' ॥ २३ ॥ किं नेयकयं को वा, न पसाओ दंसिओ सयावि मए । सुयमवहरणमाणीए, अहह अहं मारिओ तीए ॥ २४ ॥ अजए अवजसमइरा, निवासवासियविकन्नघडिपावे । कुचरियकज्जलओहलिय १ घाइणी । २ पुत्तं B. D. I acceroeDevelopemona ॥ ४ ॥
SR No.023515
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages574
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy