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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
॥ २७३ ॥
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सद्धम्ममग्गमि ॥ २२ ॥ तुह पुव्वभववयंसो, तियसोहं तइ विइन्नसंगारो। वयपडिवत्तिनिमित्तं, तुहागओ गिन्ह पव्वज्जं ॥ २३ ॥ विंसयासत्तो संतो, संतोसपरम्मुह पमत्तो य । नरयाऽगडंमि निवडसि, न कुणसि जइ मज्झ उवएसं ॥ २४ ॥ यतः — “ विषयविषमः प्राणी, चिन्ता चिताज्वलनेंधनं, विषयविषमः प्राणी प्रौढापकीर्त्तिः सुराघटः । विषयविषमः प्राणी तत्तन्महाव्यसनास्पदं विषयविषमः प्राणी पान्थः कुयोनिपुरं प्रति ॥ २५ ॥ " किंच - " वरि पविसिज्जइ जलहिलोलकल्लोलगणि, जालाजालकरालकेलि अहवा जलणि । समरंगणि अंग अंगु छिज्जउ कहवि, विसयपिवास हयास नेष किज्जइ तहवि ||२६|| "
तो मेज्जो वज्जर, अवसरो को वयस्स मह अज्ज । अग्गिमगासग्गसणे, स एस नणु मच्छियापाओ ॥ २७ ॥ तं केरिसो वयंसो, सुरो व असुरो व सव्वहा होसि । जो तारे तारुन्ने पत्ते विसए विमोएसि ॥ २८ ॥ मह कहसु कोइ रज्जाउ जाउ टाइ कंपि पत्ताओ । किं होइ तस्स सो मित्तमहव अब्बो अमित्तंति ॥ २९ ॥ देवे गयंमि इब्भेण, तेण वरियाओ अटुकनाओ । मेयज्जकए अइरूवलडहलायन्नपुन्नाओ ॥ १३० ॥ अह महरिहरिद्धीए, पारद्धो पाणिपीडणपबंधो। सह नववहूहिं चडिओ, मेज्जो नरविमामि ॥ ३१ ॥ परिचलइ धवलमंगल- मुहल महेलासहस्स संजुत्तो । रायगिहे रायप्पह - चउमुह - चच्चर - चउकेसु ||३२|| अह मायंगस्संगे, संकमिऊणं सुरो स रोइइ । पुट्ठो पियाए पभणेइ, कारणं रोइयव्वस्स ।। ३३ ।। मेयज्जस्सऽज्ज मए, वीवाहमहूसवो पिए दिट्ठो । एवमपि कुणंतो, जइ तुह जीवंतिया धूया ॥ ३४ ॥ पियदुक्खदुक्खिया सा, तस्स रहस्सं कहेइ मा रुयसु । मयधूया सा तीए, पुत्तो पुण तुज्झ मेयज्जो ॥ ३५ ॥ सा निंदू मज्झ सही, तीए पुव्वंपि पत्थियम्हि 'सुयं । खणउत्पन्नो दिन्नो, स जहा जाणेइ न हु कोइ || ३६ || तो आह एस हाहा, असमंजसमेरिसं कयं पावे । इय जंपतो पत्तो, स आसु मेयज्ज
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श्रीमेतार्यमुनिसन्धिः ।
॥ २७३ ॥