________________
उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
॥ २५७ ॥
तो नरिंद्रेण भद्दा वि सहाविया, आह नरनाह ! सव्वेवि खंडिकया । सालिभद्दस्स तब्भारियाणं तह, पायपुंछणकए हुति निच्च जह ||२८|| सेणिओ तं सुणेऊण सोहणजसो, चिंतए कयचमक्केण चित्तेण सो । केरिसो सालिभो भवे सो वणी, कामदेवोवमो एरिसो जो धणी ॥२९॥ पेक्खियव्वो सुही सव्वहा सो मए, महिगओ सुरकुमारो व्व जो सोहए। तो भणावेइ भदं महीवासवो, सालिभद्दो इहोवेड नयणूसवो ॥३०॥ ता भद्दा अक्खि अइसयसुक्खिड सालिभदु आवेइ किंव । सामिउ परिभावउ मह घरि आवउ, जोहारइ निरुपाय जिंव ॥ ३१ ॥ पेसिए तीए पुरिसंमि सम्माणिए, राइणा एय अट्ठमि अणुजाणिए। सत्थवाहीए सव्वत्थ बद्धात या, चीण चीरप्पवंचेहिं चंदोदया ||३२|| हारहीरंकमाणिक्कचक्कंकिआ, ' तेसिमंतेसु लंबूसगा संचिया । धवलिया भवणभित्ति सुचित्तंकिया; दिन्न सुपसत्थकच्छूरिया हत्थया ॥३३॥ चंगनवरंगरंगावली सज्जिया, तदुवरिं रइयरयणावली सत्थिया । मल्लिया मालई मालउम्मालिया, रंभखंभावलिउन्भड उब्भिया ॥३४॥ पइदुवारंपि निष्पट्टघ (प) किया, सार साहार कंदलदलालीकया । राउलाउ नियं जाव गेहंतओ, रायमग्गो समग्गोवि चंगो कओ ||३५|| नेत्तट्टेहिं पट्टड य पट्टेहिं सो, छाइओ छडियघुसिणंबुणा सव्वसो । तो महीनाहु सव्वेहिं सह चल्लिओ, चेल्लणाईहिं हरिसेण संपेल्लिओ ||३६|| अह हत्थिहिं चडियउ जणसंघडियउ सेणिउ अंतेउरसचिवु । पेरणियनिरंतरु पाउलपरिगरु सालिभद्दघरि पत्तु निवु ॥३७॥ सालिभद्दजणणीए जणुत्तमु, सेणियराउ ति विक्कमविक्कमु । सरसु सिणिहुँ सुसिडु सलोणड, भुंजाविउ किउ किंपि न खूणउ ||३८|| तयणंतरु तंबोलु अखंडिहिं, तीए दिन्नु नवनागरखंडीहिं । मरगय- मोत्तिय - माणिक हीरिहिं, ढोइउ ढोयणीउ वरचीरेहिं ||३९|| अह पभणेइ नरिंदु न दीसइ, सालिभद्दु ससु महासइ ! । अच्छउ अहव सोक्खिसई उट्ठहुं, कहि कहिं अच्छइ जाइ विभेदृहुं ॥४०॥ तो सा पास पहुत्ती पुत्तहि, चडिय गिहोवरि भूमिहि सत्तहिं । भाइ गिहागउ सेणिउ अच्छइ, एहि वच्छ ! तलभूमिहिं निच्छइ ||४१|| भइ : सालि सेणिउ जं कियाणउं, माइ ! मोल्लु तसु किंपि न जाणउं । तुहु जि लेसु सुमहग्घु महग्घउ करउं किमाविड हेट्ठई सिग्घउं ॥ ४२ ॥ भइ भद्द ! सेणिउ न कियाणउं, किंतु तुज्झ पहु मगहाराणउ । ता उत्तरिवि वच्छ ! जोहारहि, टलइ न सज्जणु जण ववहारहि ||४३||
१ चक्रेंदिया B चकंचिया DI
शालिभद्रमहर्षिसन्धिः ।
॥ २५७ ॥