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________________ उपदेशमाला - विशेषवृत्तिः ॥ ७७ ॥ वि तारतेयरूवाइ जाइ जइ नासं । तो दिवसमासवासेहिं, किंपि होही न याणेमो ॥ १४० ॥ किं किं न कथं कलुसं, कायस्सेयस्स कारणेण मए | तस्सावि दसा एसा, ता सज्जो किज्जउ सकज्जं ॥ ४१ ॥ सुदिढ सरीरेणं, कस्स कस्स कज्जाई सज्जियाई न मे । अबलो नियकज्जेसु वि, कह पिक्खिस्सं परसुहाई ॥ ४२ ॥ सुकयं सुकयं जं आसि, संपर्यं तं गयं नवं कुणिमो | कह अबलंगो रोगेहिं, साहयिस्सामि परलोयं ॥ ४३ ॥ भोगे भोत्तुमसत्तो, अन्ने भुंजतए नियच्छंतो । ईसा दुहं वहिस्सं, सुहाय अहुणा चइस्सं ते ॥ ४४ ॥ " किंच—“ आस्थानी प्रथमा मलोच्चयमयः कुक्षिः स्त्रियः कुत्सितो, विस्रैर्वृद्धिरनुक्षणं मलरसैः स्यन्दः सदा तन्मयः । संस्कारः प्रतिवासरं यदि जलस्नेहादिभिर्नायते, काऽवस्था वपुषस्तदापि निधनेऽप्येतस्य कीदृग्दशा ॥ ४५ ॥ ततः- “ कप्पदुमं तणेण व, काणकवड़ेण कामधेणुं व। चिंतामणिमुवलेण व, कारण किणामि धम्मधण ॥ ४६ ॥ इय नियपट्टे पुत्तं, ठवित्तु कयअरिह - संघसम्माणो । अच्छिन्नचक्किलच्छीविच्छ छड़िय तणं व ॥ ४७ ॥ सिरिविणयंधरसूरीणमंति अज्जिणे पव्वज्जं । सम्मं सिक्खिय अक्खलियचोक्खसिक्खो महियमोक्खो ॥ ४८ ॥ रयणरमणीनिहाणा नयरनरनाहपमुहमणुलग्गं । जा छम्मासे भमियं खर्णपि खित्तं न चक्खुपि ॥ ४९ ॥ छट्ठस्संते पारह, चीणकूरेण छगलछासीए । पुण छट्ठाइतवार्ण, पारणयं कुणइ चीणाई ॥ १५० ॥ एएण तवोकम्मेण, पारणेणं च अइचिरं कालं । पयपाणेणं फणिणो व्व वाहिणो दूसहा जाया ॥ ५१ ॥ तिव्वेण तवोकम्मेण, तस्स आमोसहाइलद्धीओ । जाया तहावि वाहीपडियारं कुणइ न कयाइ ॥ ५२ ॥ जाणइ जह पुव्वकडाण दुक्कडाणं अवेइयाण सयं । मोक्खो न होइ वेएइ, वेयणं तेण ताण सया ॥ ५३ ॥ कंडू अभत्तसद्धा, तिब्बा विया य अच्छि कुछी । सासं खासं च जरं अहियासइ सत्तवाससए ॥ ५४ ॥ हरिणा पुणवि पसंसा, कया कयावि हु - कुमारस्स । सकेण वि सकिज्जइ, न मए खोभिउमिमोऽवरसं ॥ ५५ ॥ तियसा तेश्चिय तो सत्तमुत्तमं तस्स तं परिक्खिडं । सनत्कुमार| चक्रिसन्धिः 11 199 11
SR No.023515
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages574
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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